Friday, January 29, 2010

मेरी फित़रत नहीं....

मेरी फितरत़ नहीं,इन्सान को खुद़ा कहना।
फायद़े के लिये, तारीफ़ की ज़ुबाँ कहना ।।

किसी को, हक् से भी ज्याद़े,तवज्ज़ो देना।
किसी की शाऩ में,हकीक़त से ज्याद़ा कहना।।

वैसे ये फ़न है,पर ये हुनर् मुझे नहीं भाता।
जैसे रिश्वत में, सन्तरी को द़रोगा कहना ।।

..गोपाल..गोपाल ही रहे ग़र,तो बेहतऱ है बहुत।
अपनी औक़ात समझता रहे,तो क्या कहना !।

2 comments:

  1. waah bahut khoob..
    वैसे ये फ़न है,पर ये हुनर् मुझे नहीं भाता।
    जैसे रिश्वत में, सन्तरी को द़रोगा कहना ।।

    kya baat hai

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  2. बहुत ही अच्छा, मै भी इस बात से इत्तेफाक़ रखता हूँ।
    Sushil Kr Sudhanshu

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