रहने लगा है , सबसे फासला किये हुए।
जबसे है दिल़ ग़मों से राबिता किये हुए।।
बेचैनी सारी खत्म हुई , बेखुदी गई।
हैं दर्द को जिस दिन से हम दवा किये हुए।।
अब तो यहाँ ना शोर,ना कोहराम़ है कोई।
जबसे गया तूफाऩ , बियाबाँ किये हुए।।
मुद्द़त् हुई,सजे यहाँ,कोई ज़श्ऩ-ए-महफिल़।
बरसों ग़ुजर गये हैं , चिरागाँ किये हुए।।
मिलने की आरज़ू में,ज़िन्दगी गुज़ार दी।
वो हैं कि ग़ुजर जाते हैं,पर्दा किये हुए।।
एक बार भी,जो मेरा कहा मान जाते वो।
..गोपाल..कबसे है,ये तमन्ना किये हुए।।
Saturday, January 9, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment