Friday, January 29, 2010

ज़रा हटके है ज़माने से...

हमें पसन्द नहीं, भीड़ का हिस्सा बनना।
मिज़ाज अपना,ज़रा हटके है ज़माने से।।

आदमी चाहे तो, तन्हा ही बहुत कुछ करले।
अपनी पहचान बनाले अलग़, ज़माने से ।।

मऩ में हो हौस़ला,और खुद़ पे भरोसा हो अग़र।
रोक सकता न कोई,मन्ज़िल तक जाने से ।।

लोग़, तन्हा ही तो इतिहास रचा करते हैं।
बना करती है लीक़, उनके गुज़र जाने से।।

मेरी फित़रत नहीं....

मेरी फितरत़ नहीं,इन्सान को खुद़ा कहना।
फायद़े के लिये, तारीफ़ की ज़ुबाँ कहना ।।

किसी को, हक् से भी ज्याद़े,तवज्ज़ो देना।
किसी की शाऩ में,हकीक़त से ज्याद़ा कहना।।

वैसे ये फ़न है,पर ये हुनर् मुझे नहीं भाता।
जैसे रिश्वत में, सन्तरी को द़रोगा कहना ।।

..गोपाल..गोपाल ही रहे ग़र,तो बेहतऱ है बहुत।
अपनी औक़ात समझता रहे,तो क्या कहना !।

Sunday, January 24, 2010

वक्त से पहले,मुक़द्दर से ज़ियादे....

लोग़ ऐसा नहीं कि ग़ैर इरादे न मिलें।
ये और है कि आप करके भी वाद़े,न मिलें।।

आप गुज़रा किये मेरी ग़ली से भी, यूँ तो।
हमसे मिलना न था,तो पास भी आके न मिले।।

अब इतने ग़ैर हुए हम़,कि फेर ली आँखें।
यूँ निकलते हैं बचके,हम कहीं आगे न मिलें।।

हमपे तो वैसे भी हालात़ हैं,भारी-भारी।
ऐसे में आपके भी ऩेक इराद़े न मिलें।।

यही मन्ज़ूरे-वक्त है,तो चलो यूँ ही सही।
हर किसी को यहाँ मुँह-माँगी मुरादें न मिलें।।

..गोपाल..कर लिया ये सोच के ख़ामोश़ ज़ुबाँ।
वक्त से पहले,मुक़द्दऱ से ज़ियादे, न मिले।।

शानदार था शायद....

दर्द़ से ज़ार-ज़ार था, शायद।
वो मर गया,बीमार था,शायद।।

कौन था,क्या था,कहाँ का था वो?
दिल्लग़ी का शिकार था, शायद।।

और चढ़ता गया,ज्यों-ज्यों दवा की।
वो ईश्क़ का बुखार था, शायद ।।

आपका नाम लेके,दम छूटा।
आपसे,उसको प्यार था,शायद।।

सुना है,मर के भी,आँखें थी खुली।
आपका इन्तज़ार था,शायद।।

ख़िज़ा गवाह है,इस बात की अब।
कभी फ़सले-बहाऱ था,शायद।।

नोच ली ऩूर,वक्त ने अब तो।
..गोपाल..शानदार था,शायद।।

Wednesday, January 20, 2010

मेरा दर्द ना समझा कोई....

मेरे क़रीबसे जो भी ग़ुजरा,सबने अपनी-अपनी रोई।
सबने अपना द़र्द सुनाया,मेरा द़र्द ना समझा कोई।।

दुनियाँ दीवानी खुद़गर्जी की,रिश्तों में देखे मतलब़।
फितरत् और फ़रेब के हाथों,बेच चुकी है ज़मीरो-ग़ैरत्।
दिल़ के दरवाज़े,दस्तक़ देता हूँ पर आहट़ ना कोई।।सबने अपना दर्द...

दिल़,ज़ज्बात्,एहसास,मुरौव्वत्,अदब़ किताबों में जा बैठे।
शर्मो-हया,नैतिकता और लिहाज़ लगाए नक़ाब हैं बैठे।
संस्कार श्मशान जा रहा खुद ही, दे कन्धा ना कोई।।सबने अपना दर्द...

दिल़,ज़ज्बात् जिया हूँ,अदब,एहसास,उसूल उठाए मैंने।
खुशियों की ख्वाहिश़ ना रखी,सबके ग़म अपनाए मैंने।
कभी किसी की देखी जाए,मुझसे मजबूरी ना कोई।। सबने अपना दर्द...

सबको उम्मीदें मुझसे,..गोपाल..में सबका हक् शामिल है।
मेरे दिल़ के ग़लियारे में,किससे कहूँ ,कितनी हलचल़ है।
भूखी है भावना मेरी,दिल़ प्यासा,किसी को खब़र न कोई।।सबने अपना दर्द...

Monday, January 18, 2010

किसे सुनाएँ हाले-दिल़....

अब तो खामोशी भली,लब़ पे लगालें ताला।
किसे सुनाएँ हाले-दिल़,कौन सुनने वाला।।

चन्द सिक्कों की खनक़ में,सभी हुए बहरे।
दौड़ती-भागती दुनियाँ, कहाँ जाने ठहरे।
अभी ये सिल़सिला,लगता नहीं रुकने वाला।। किसे सुनाएँ...

जिसे भी देखिये,हक़ से ज़ियादे की धुऩ है।
किसे बेचें,क्या खरीदें, यही उधेड़-बुऩ है।
ऐसे बेचैनी के आलम़ में,कौन फुर्सत् वाला।। किसे सुनाएँ...

मरते ज़मीर,उसूल, गैरतो-ज़ज्बात् मिले।
महात्वाकांकांक्षा,कपट और स्वार्थ साथ मिले।
फ़ायदे के लिये,सबकुछ यहाँ बिकने वाला।। किसे सुनाएँ...

प्रेम-सद़्भाव,नैतिकता, इन्सानिय़त् न कहीं।
दिल़ की बस्ती में वीराना है,कोई आहट़ न कहीं।
है यहाँ कौन तेरा दर्द समझने वाला।। किसे सुनाएँ...

छोड़ो बेदर्द़ ज़माने से ग़िला क्या करना।
बेज़ान बुत़् में ज़िन्दगी तलाश़ क्या करना।
..गोपाल..इन पत्थरों में दिल़ नहीं मिलने वाला।। किसे सुनाएँ...

Sunday, January 10, 2010

क्यूँ है....

वादे पे किसी के अब भी, एतबार सा क्यूँ है।
दिल़ आज़ भी किसी का तलबग़ार सा क्यूँ है।।

यूँ तो हमें नहीं है,किसी का भी इन्तजाऱ।
फिर भी ये दिल़ न जाने,बेक़रार सा क्यूँ है।।

अब़ तो किसी आहट़ पे नहीं चौंकते हैं हम।
फिर भी कहीं इक़ भरम बरक़रार सा क्यूँ है।।

है ज़िन्दगी जबकि नाउम्मीदी के हवाले।
उम्मीद़ के घोड़े पे,दिल़ सवार सा क्यूँ है।।

हर चेहरे को पहचानते फिरते हैं हम..गोपाल..।
अब भी वही चेहरा,हमें दरक़ार सा क्यूँ है।।

Saturday, January 9, 2010

तमन्ना किये हुए....

रहने लगा है , सबसे फासला किये हुए।
जबसे है दिल़ ग़मों से राबिता किये हुए।।

बेचैनी सारी खत्म हुई , बेखुदी गई।
हैं दर्द को जिस दिन से हम दवा किये हुए।।

अब तो यहाँ ना शोर,ना कोहराम़ है कोई।
जबसे गया तूफाऩ , बियाबाँ किये हुए।।

मुद्द़त् हुई,सजे यहाँ,कोई ज़श्ऩ-ए-महफिल़।
बरसों ग़ुजर गये हैं , चिरागाँ किये हुए।।

मिलने की आरज़ू में,ज़िन्दगी गुज़ार दी।
वो हैं कि ग़ुजर जाते हैं,पर्दा किये हुए।।

एक बार भी,जो मेरा कहा मान जाते वो।
..गोपाल..कबसे है,ये तमन्ना किये हुए।।

इस राह पे लाकर....

फिर दर्द का तूफान,जवाँ कर गया कोई।
ठहरी हुई इक़ मौज़ रवाँ कर गया कोई।।

वैसे ही गर्केयाब़ थी,किश्ती मेरे दिल़ की।
शैलाब और ग़म के,उठा कर गया कोई।।

यादों के आईने में,जो कुछ जम सी चली थी।
वो धूल वक्त़ की,फिर उड़ा कर गया कोई।।

ज़ख्मे-जिग़र जो सूख चला था,ज़रा-ज़रा।
फिर उसमें नयी टीस जगा कर गया कोई।।

यूँ देखता हुआ गुज़र गया हमें जैसे।
कि अज़नबी क़रीब से ग़ुजर गया कोई।।

हम भी वही,वो भी वही,बस् वक्त़ वो नहीं।
अपनी वफात् से,क्यूँ फिर,मुक़र गया कोई।।

..गोपाल..हमें ऐसी तो उम्मीद़ नहीं थी।
इस राह पे लाकर,अब उस डग़र गया कोई।।

Friday, January 8, 2010

तू ज़िन्दगी है..

मिल ज़ान,हकीक़त में या ख्वाबों में मिला कर।
ना मिल सके बेपरदा, हिज़ाबों में मिला कर।।

नज़रों के रास्ते, तुझे दिल़ में उतार लूँ।
तू बन के स़फा,हमसे क़िताबों में मिला कर।।

तू बन के खुशबू आजा,हवाओँ के संग-संग।
बन के बरस जा बूँद,घटाओँ में मिला कर।।

बन के तू मस्ती शाम़ की,सुबह की ताज़गी।
हर शाम़ में,सुबह की फिज़ाओँ में मिला कर।।

दुनियाँ के बन्दिशों की, न परवाह़ किया कर।
तू ज़िन्दगी है,रूह में ,साँसों में मिला कर।।

तेरे बग़ैर, कैसी हो तसव्वुरे-हयात़्।
जी लेंगे तुझे देख के,..गोपाल..मिला कर।।

तो ग़ज़ल कह बैठे....

ग़म की बारिश ने भिगोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।
दिल़ तेरी याद़ में रोया, तो ग़ज़ल कह बैठे।।

लगी गहराने तेरे दर्द की जब परछाईं।
तेरे सपनों की जब आँखों में मौज़ लहराई।
ख्याल़ जग उठा सोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

किसी हसीन सी वादी से,जब कभी गुज़रे।
दिल़ की खिड़की खुली,बनके ख्याल़ तुम उभरे।
और हमें खुद़ में समोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

सुरमई शाम हो,तनहाई हो,फुर्सत़ हो ज़रा।
भीनी-भीनी सी महक़ लेके सरसराई हव़ा।
दिल़ में नश्तऱ सा चुभोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

नहाई चाँदनी में जब कभी भी रात हसीं।
दूर हलके से सुरों में,कहीं शहनाई बजी।
हमें नशे में डुबोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

घिर के आईं जो कभी,मस्त घटाएँ काली।
हुई सावन की जो रिम-झिम़,दिल़ लुभाने वाली।
दिल़ तेरे सपनों में खोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

क्या पता,शायरी क्या,मीऱ क्या और ग़ालिब़ क्या।
दिल़ में जज्बात़ कुछ मचले,..गोपाल..गुबाऱ उठा।
उन्हें लफ्जों में पिरोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।। दिल़ तेरी याद़..

Thursday, January 7, 2010

प्यार-मुहब्बत़....

भूल जाओ और याद़ न रखो, कहना है आसान।
प्यार-मुहब्बत़ क्या समझे,कोई पत्थर-दिल़ इन्सान।।

ज़ान-बूझकर कोई किसी से प्यार नहीं है करता।
पहली नज़र में हो जाता है,ज़ादू दिल़ पर इसका।
चुपके से दिल़ का मेहमाँ,बन जाता कोई अनज़ान।। प्यार-मुहब्बत़।।

लगने लगते दिल़ को,जीवन के हर रंग सुहाने।
जीने का अन्दाज़ बदल जाता है, क्यूँ ना जाने।
होती दुनियाँ के सुन्दरता की असली पहचान ।। प्यार-मुहब्बत़।।

नहीं ज़रूरी है ये कि हम़ साथ गुज़ारें जीवऩ।
प्यार किया तो किया किसी को,करते रहेंगे हरदम़।
प्यार में कोई शर्त न होती,होता है बलिदाऩ ।। प्यार-मुहब्बत़।।

होती तऩ की हवस़ जहाँ,हो वहीँ जुनूँ पाने का।
प्याऱ नाम है देने का,और किसी के हो जाने का।
समझे प्यार हवस़ को जो,..गोपाल..बड़ा नादान।।प्यार-मुहब्बत़।।

Monday, January 4, 2010

आज़ के मज़नुओं ने....

आज़ के मज़नुओं ने,प्यार को सस्ता बना डाला।
किसी को भी थम्हादे,ऐसा गुल़दस्ता बना डाला ।।

बदल दी शक्लो-सूरत,रंगो-बू,पहचान यूँ इसकी।
कि हालत इस कद़र कुछ,प्यार का खस्ता बना डाला।।

अजी वो और थे,जो कर गये थे खुद़ा प्यार को।
पहाड़ों को भी जिसने चीरकर,रस्ता बना डाला ।।

आज-कल़ प्यार,एक फैशऩ की,नुमाईश की चीज़ है।
जो कल परदे में था,आज़ उसका ही परद़ा बना डाला।।

Sunday, January 3, 2010

चलो लौट चलें....

दूर तक अन्धेरा ही अन्धेरा है,चलो लौट चलें।
कितना सायूस़ सवेरा है , चलो लौट चलें ।।

गर्दिशे-वक्त़ की गुबार है, कुछ यूँ फैली ।
और तकदीऱ की चाद़र भी अपनी,है मैली।
बेऱहम धुन्ध ने घेरा है, चलो लौट चलें ।। कित़ना मायूस....

कहीं भी रोशनी नहीं,जहाँ तक जाती नज़र।
चलो अब छोड़कर चलें,ये अन्धेरों का शहऱ।
यहाँ खुद़ग़र्जी का डेरा है, चलो लौट चलें ।। कितना मायूस....

चलो वहीं फिर, जहाँ ज़िन्दग़ी नग़मे गाती।
जहाँ..गोपाल..सच्,इन्सानियत़,उम्मीद़ के साथी।
प्याऱ का दिल़ में बसेरा है, चलो लौट चलें ।। कितना मायूस....

दुनियाँ तेरी उस पार....

तू उलझा इस पार मुसाफिऱ,दुनियाँ तेरी उस पार।
बिऩ माली गुलश़न जैसा,तेरा सूना पड़ा संसार।।मुसाफिर दुनियाँ..

तेरे अपने रोते तुझ बिन,कटती रातें तारे गिन-गिन।
ओढ़ते आशा,बहाने बिछाते,आँसू पीते,सपने खाते ।
समय सरकता सिसक-सिसक कर,करते तेरा इन्तजार।।मुसाफिर दुनियाँ..

खोज़ रहा तू सुख के साधन,छोड़ आया पीछे सारा धन।
उन आँखों में आँसू भरकर,अपने दिल पर पत्थर रखकर।
सपनों के पीछे-पीछे , तू करता हाहाकार ।। मुसाफिर दुनियाँ..

सोच तनिक तूने क्या पाया,देख पलट के क्या छोड़ आया।
छोड़ दौड़ना दौड़ ये अन्धी,लौट जा,मुड़ जा,वापस अब भी।
हो जाए फिर से गुलशऩ..गोपाल..तेरा गुलज़ार ।। मुसाफिऱ दुनियाँ..

Saturday, January 2, 2010

जिन्दगी देखी....

ज़िन्दगी देखी--ज़िन्दगी के रंग देखे।
दुनियाँ देखी--दुनियाँ की रीति देखी।
अपने देखे--अपनों का प्य़ार देखा ।
बेग़ाने देखे--बेग़ानेपन की हद़ देखी।
दोस्त़ देखे--दोस्ती का म़कसद़ देखा।
दुश्मनी देखी--दुश्मनी की बुनिय़ाद देखी।
आद़मी देखा--आद़मी की औकात़ देखी।।

बुरा मान गये....

हाले-दिल़ पूछे,बताया,तो बुरा मान गये।
उन्हें यकीं भी दिलाया,तो बुरा मान गये।।
पायें-नाज़ुक न सऱ-आँखों पे जो लिया हमने।
सऱ ही सज़दे में झुकाया,तो बुरा मान गये।।
ढूंढते फिरते हैं वो दाग़, सबके चेहरों पे ।
आईना उनको दिखाया,तो बुरा मान गये।।
उछलते फिरते हैं वो,बनके ज़वानी की शान।
झुर्रियाँ याद़ दिलाया, तो बुरा मान गये ।।
हर घड़ी फायदे की बात,किया करते हैं।
फर्ज़ की बात चलाया,तो बुरा मान गये।।
अज़ीब सख्श हैं..गोपाल.. कोई ठीक नहीं।
हुए किस बात पे वो खुश,कब बुरा मान गये।।

Friday, January 1, 2010

दोस्त बन-बन के....

जब भी मिलते हो,दिल़ को ज़ख्म़ नया देते हो।
दोस्त बन-बन के तुम,हर बार द़गा देते हो ।।

तुम्हे एहसास़ ही क्या,दिल़ है क्या,जज्बात् है क्या।
गरज़ पे अपने,याद़ करते हो,भुला देते हो ।।

अपने मतलब़ के लिये,रंग बदलते हो तमाम़।
कहीं,किसी भी हद़ तक,खुद़ को गिरा देते हो।।

सुनाए तुमको ,कोई अपना हाले-दिल़ कैसे ।
..गोपाल..सुनने से पहले ही, सुना देते हो।।

कैसे मिटेंगे फासले....

जीवन के सफऱ में, निभाऊँ कैसे तेरा साथ।
तुम रुक नहीं सकते,मैं चल नहीं सकता ।।

कैसे समझ सकोगे तुम, हाले-दिल़ मेरा ।
तुम़ पूछ नहीं सकते, मै कह़ नहीं सकता।।

अपनी है कहानी, कुछ ज़मीं-आसमाँ जैसी।
ये उठ नहीं सकती, वो झुक़ नहीं सकता ।।

कैसे मिटेंगे फास़ले,..गोपाल..अपने बीच।
तुम़ आ नहीं सकते, मैं जा नहीं सकता ।।