Saturday, July 18, 2015

अब वो क़सीदा नहीं रहा.............

जुमलों में उनके,अब वो क़सीदा नहीं रहा।
लगता है उनको, ख़ुद पे अक़ीदा नहीं रहा ।।

जो लोग पिछड़ जाते हैं, रफ्तारे-वक़्त से ।
दुनियाँ उसे कहती है, तरीक़ा नहीं रहा  ।।

नज़रें जो बदलता है, नज़ारों के संग-संग।
ये वक़्त गवाह है , वो कहीं का नहीं रहा  ।।

कुछ तो उसूल हों , ज़िन्दग़ी के वास्ते  ।
अब वक़्त एक सा तो किसी का नहीं रहा।।

ये कौन सा दस्तूर, बना रक्खा है हमने।
मतलब के बिना कोई, किसी का नहीं रहा।।

हमने तो सुना है कि, ज़र्रे-ज़र्रे में रब है।
हममें ही, देखनें का सलीक़ा नहीं रहा ।।

इंसान ही, इंसानियत् का फ़र्ज़ न समझे।
,,गोपाल,, ये तरीक़ा- तरीक़ा नहीं रहा  ।।