आज़ के मज़नुओं ने,प्यार को सस्ता बना डाला।
किसी को भी थम्हादे,ऐसा गुल़दस्ता बना डाला ।।
बदल दी शक्लो-सूरत,रंगो-बू,पहचान यूँ इसकी।
कि हालत इस कद़र कुछ,प्यार का खस्ता बना डाला।।
अजी वो और थे,जो कर गये थे खुद़ा प्यार को।
पहाड़ों को भी जिसने चीरकर,रस्ता बना डाला ।।
आज-कल़ प्यार,एक फैशऩ की,नुमाईश की चीज़ है।
जो कल परदे में था,आज़ उसका ही परद़ा बना डाला।।
Monday, January 4, 2010
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"Jo kal parde me tha aaj uska hi parda bana dala" ... sachmuch..
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