Thursday, August 26, 2010

बेवजह का शोर है.....

हाक़िमों की महफ़िलों में, बेवजह का शोर है ।
कौन? उसकी सुनने वाला,जो यहाँ कमज़ोर है।।

ऱुतबे की दहलीज पर,घुटनों के बल कानून है।
जितना जो तोड़े इसे,वो उतना अफ़लातून है।।
उतना क़ामयाब है,जो जितना सीनाज़ोर है।। कौन....

बिन सबूतों के, बेचारा सच् सिसकता रह गया।
झूठ ने ओढ़ा लबादा,और ख़ुद सच् बन गया।।
अब सही और ग़लत्,इनके मायने कुछ और है।। कौन....

धोखा खाने वाले कम हैं,देने वाले हैं अधिक।
आज हर क़ीमत पे भारी,क़ामयाबी है अधिक।।
राह से मतलब किसे? ..गोपाल..अन्धी दौड़ है।। कौन....

Wednesday, August 18, 2010

य़हाँ तक आते-आते.....

चला था कारवाँ लेके, सफ़र पे।
अकेला रहगया मैं,यहाँ तक आते-आते।।

सफ़र जब ग़र्दिशो-तूफ़ान में था।
तल्ख़ सहरा में,बियाबान में था।।
नाख़ुदा तब मुझे सब मानते थे।
ख़ुद से ज़्यादा मुझे पहचानते थे।।
बड़े अदब से सब एहसाँ उठाते ।। अकेला रहगया मैं....

वक़्त का वो पुराना दौर बदला।
रफ़्ता-रफ़्ता सफ़र का ठौर बदला।।
अरे ये क्या! कि सब छितरा रहे हैं।
क्या मंज़िल मिलगई? सब जा रहे हैं।।
ना पूछा-ना कहा कुछ जाते-जाते ।। अकेला रहगया मैं....

ये तो मासूम थे,चालाक़ निकले।
दिल को क्या खूब!करके चाक् निकले।।
आज़ मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ ?
उम्र का वो हिस्सा कहाँ पाऊँ ?।
अबतो मंज़िल भी अपनी भूल आया,चलते-चलाते।।अकेला रहगया मैं...

अब अपने साथ, बस्! तन्हाइयाँ हैं।
कि ग़ुज़रे वक़्त की परछाइयाँ हैं ।।
दिल में दम तोड़ते, कुछेक सपने।
और घायल से कुछ जज़्बात् अपने।।
..गोपाल..अब थक चुका लुटते-लुटाते।।अकेला रहगया मैं...

Sunday, August 1, 2010

हर मोड़ इम्तिहान लगी......

ज़िन्दग़ी! वैसे तो, तू देख के आसान लगी।
मग़र जीने में, तू हर मोड़ इम्तिहान लगी ।।

कभी उछली,कभी फिसली,कभी ठहर सी गई।
कभी इक़ लम्हा,तू इक़ बरस के समान लगी।।

लगी फूलों का ग़ुलदस्ता,ख़ुशी हो मन में जो।
दिल में हो दर्द तो,तू मौत का सामान लगी।।

हुआ करती थी,कभी रौनके-महफ़िल हमसे।
आज हमसे वही महफ़िल बेरूख़-बेजान लगी।।

कभी पलकों पे बिठाया, चली पीछे मेरे ।
आज क़तरा चली दुनियाँ,बड़ी अन्जान लगी।।

यूँ तो,हर सख़्श का है तज़ुर्बा, अपना-अपना।
..गोपाल..को तो हर क़दम,जंगे-मैदान लगी।।

वो लोग जो पहली बार.....

कभी दिल से नहीं जाते हैं,भले ही मिलके बिछड़ जाते हैं।
वो लोग जो पहली बार नज़र से,दिल में उतर जाते हैं।।

हों दूर भले आँखों से,पर दिल से दूर न होते।
आते उनके ही सपने,हर घड़ी जागते-सोते ।।
वो ख्वाबों-ख्यालों के नश्तर,कर चाक् ज़िग़र जाते हैं।। वो लोग जो।।

जब कभी जेहन में,उनका चेहरा,उभर आता है।
बेचैनी बढ़ जाती, दिल पागल हो जाता है ।।
दिल से होकर मजबूर दिवाने,क्या-क्या कर जाते हैं।। वो लोग जो।।

उनके पहलू में, जितना भी वक़्त ग़ुज़र जाता है।
वो याद सुनहरी बनकर,सीने में उतर जाता है ।।
..गोपाल..वो मंज़र, गए दिनों के,सारी उमर जाते हैं।। वो लोग जो।।