Friday, January 8, 2010

तो ग़ज़ल कह बैठे....

ग़म की बारिश ने भिगोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।
दिल़ तेरी याद़ में रोया, तो ग़ज़ल कह बैठे।।

लगी गहराने तेरे दर्द की जब परछाईं।
तेरे सपनों की जब आँखों में मौज़ लहराई।
ख्याल़ जग उठा सोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

किसी हसीन सी वादी से,जब कभी गुज़रे।
दिल़ की खिड़की खुली,बनके ख्याल़ तुम उभरे।
और हमें खुद़ में समोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

सुरमई शाम हो,तनहाई हो,फुर्सत़ हो ज़रा।
भीनी-भीनी सी महक़ लेके सरसराई हव़ा।
दिल़ में नश्तऱ सा चुभोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

नहाई चाँदनी में जब कभी भी रात हसीं।
दूर हलके से सुरों में,कहीं शहनाई बजी।
हमें नशे में डुबोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

घिर के आईं जो कभी,मस्त घटाएँ काली।
हुई सावन की जो रिम-झिम़,दिल़ लुभाने वाली।
दिल़ तेरे सपनों में खोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

क्या पता,शायरी क्या,मीऱ क्या और ग़ालिब़ क्या।
दिल़ में जज्बात़ कुछ मचले,..गोपाल..गुबाऱ उठा।
उन्हें लफ्जों में पिरोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।। दिल़ तेरी याद़..

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