Saturday, January 8, 2011

घोटालों की गूँज...........

चहुँदिशि भ्रष्टाचार की,मची हुई है धूम।
जिधर भी देखो उठ रही,घोटालों की गूँज।।

कालीनों पर फिसल कर,करते रोज विकास।
पैसा गया स्विस् बैंक में,हमको दें विश्वास।।
इक़ दिन क़िस्मत् देश की,देगें बदल हुज़ूर।।जिधर भी।।

अधिकारों का दुरुपयोग,अब है सत्ता का खेल।
नेता-अफ़सर ताल-मेल से,खेल रहे यही खेल।।
जीयो और जीने दो,इनका यही मन्त्र है मूल।।जिधर भी।।

चारा हो,बोफोर्स हो, या फिर हो ताबूत् ।
टू जी,थ्री जी,सी डब्लू जी,निगल गए सबकुछ।।
जाँच करो,आयोग बिठादो,करते रहो जो कुछ।।जिधर भी।।

उपजाए बहु-विधि फसल,जोत-जोत कर खेत।
कल भी आधा पेट था,आज भी आधा पेट ।।
क्या बदला उसके लिए,जान ले गई भूख।।जिधर भी।।

अब हर आम इन्सान का,आज है बस् यही हाल।
घिसट-घिसट जीवन कटे, रोटी-दाल मुहाल ।।
रबड़ी नेताजी चखें, ऐँठ-ऐँठ कर मूँछ ।। जिधर भी।।

बनना है धनवान तो,देश की चिन्ता छोड़।
ईमानदारी,सच्चाई और फ़र्ज़ से तू मुँह मोड़।।
नेता बन,क़िस्मत् बदल,राजनीति में कूद ।।जिधर भी।।

वो थे निपट नादान जो देश पे दे गए ज़ान ।
माँ-बापू,बीबी-बच्चों की,तनिक न की परवाह।।
आज उनके सपनों की होली,जलती है धू-धू।।जिधर भी।।

देश की अस्मत् बेच-बेच कर,बना रहे हैं माल।
मर्यादाओं, आदर्शों का, पाले कौन बवाल ?
देश की क्या "गोपाल"को, मची हुई है लूट ।।जिधर भी।।