Wednesday, January 20, 2010

मेरा दर्द ना समझा कोई....

मेरे क़रीबसे जो भी ग़ुजरा,सबने अपनी-अपनी रोई।
सबने अपना द़र्द सुनाया,मेरा द़र्द ना समझा कोई।।

दुनियाँ दीवानी खुद़गर्जी की,रिश्तों में देखे मतलब़।
फितरत् और फ़रेब के हाथों,बेच चुकी है ज़मीरो-ग़ैरत्।
दिल़ के दरवाज़े,दस्तक़ देता हूँ पर आहट़ ना कोई।।सबने अपना दर्द...

दिल़,ज़ज्बात्,एहसास,मुरौव्वत्,अदब़ किताबों में जा बैठे।
शर्मो-हया,नैतिकता और लिहाज़ लगाए नक़ाब हैं बैठे।
संस्कार श्मशान जा रहा खुद ही, दे कन्धा ना कोई।।सबने अपना दर्द...

दिल़,ज़ज्बात् जिया हूँ,अदब,एहसास,उसूल उठाए मैंने।
खुशियों की ख्वाहिश़ ना रखी,सबके ग़म अपनाए मैंने।
कभी किसी की देखी जाए,मुझसे मजबूरी ना कोई।। सबने अपना दर्द...

सबको उम्मीदें मुझसे,..गोपाल..में सबका हक् शामिल है।
मेरे दिल़ के ग़लियारे में,किससे कहूँ ,कितनी हलचल़ है।
भूखी है भावना मेरी,दिल़ प्यासा,किसी को खब़र न कोई।।सबने अपना दर्द...

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