Friday, July 23, 2010

..रब से कम, इन्सान से ज्यादा डरो....

किसका रोना रोने जाओ, किसकी बात करो।
इस दुनियाँ में,ऱब से कम,इन्सान से ज्यादा डरो।।

रब तो, जैसी करनी तेरी,वैसा फल देगा।
पर इन्साँ चाहेगा तो,बिना कर्म के फल देगा।
और किसी के कर्मों का हर्जाना आप भरो ।। इस दुनियाँ में।।

अच्छाई का बदला,बेशक्!रब अच्छा देगा।
पर इन्साँ की मर्ज़ी पर है, जो चाहे देगा।
सबकुछ उसके मूड पे है,तुम जीओ,चाहे मरो।। इस दुनियाँ में।।

क़दम-क़दम पे जाल बिछा है,किधर से निकलोगे?
मौका तो दे दो, फ़िर देखो, ख़ुद पर रोओगे ।
आज तो रब ख़ुद हैराँ है,..गोपाल..क्या आह भरो।। इस दुनियाँ में।।

Thursday, July 15, 2010

मिल जाया करेंगे यूँ ही,जीवन के सफ़र में....

मिल जाया करेंगे यूँ ही, जीवन के सफ़र में ।
किस रस्ते पे,किस मोड़ पे,ये कह नहीं सकता।।

वैसे भी, हरेक बात का वादा, नहीं अच्छा ।
कल कौन कहाँ हो,ये कोई कह नहीं सकता।।

दिल में, ज़रा सी जगह, मेरे वास्ते रखिए ।
मैं वक़्त नहीं ग़ुज़रा,जो फिर आ नहीं सकता।।

आने की ख़ुशी कैसी,क्या है मिलन का एहसास।
अब!उसको क्या पता,जो कभी जा नहीं सकता।।

Thursday, July 8, 2010

जाने क्यूँ बात चली......

की है तन्हाई से बातें पहरों,सुनी है शोर ख़ामोशी की तमाम।
छटपटाती हुई सुबहें कितनी,और सिसकती हुई देखी है शाम।
ग़म से बेज़ार दोपहर देखी, रात रोती हुई मायूस, नाकाम ।
बन्द कमरे में बेबसी के पल,कटती बेमकसद् ज़िन्दग़ी तमाम।।
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फिर तेरा जिक्र छिड़ा,फिर तेरी बात चली।
दिल में एक हूक उठी,आह बनकर निकली।।

ख्याल बनके उठे, तुम छा गए दिल पर ।
धूल यादों की उड़ी, फिर तमन्ना मचली ।।

पुराने ज़ख्म खुले, बहा फिर खूँ दिल का ।
ग़म के बादल घुमड़े, झड़ी आँसू की चली।।

बहल चला था दिल,मचल उठा..गोपाल..।
अब सम्भालूँ कैसे , जाने क्यूँ बात चली ।।