फिर दर्द का तूफान,जवाँ कर गया कोई।
ठहरी हुई इक़ मौज़ रवाँ कर गया कोई।।
वैसे ही गर्केयाब़ थी,किश्ती मेरे दिल़ की।
शैलाब और ग़म के,उठा कर गया कोई।।
यादों के आईने में,जो कुछ जम सी चली थी।
वो धूल वक्त़ की,फिर उड़ा कर गया कोई।।
ज़ख्मे-जिग़र जो सूख चला था,ज़रा-ज़रा।
फिर उसमें नयी टीस जगा कर गया कोई।।
यूँ देखता हुआ गुज़र गया हमें जैसे।
कि अज़नबी क़रीब से ग़ुजर गया कोई।।
हम भी वही,वो भी वही,बस् वक्त़ वो नहीं।
अपनी वफात् से,क्यूँ फिर,मुक़र गया कोई।।
..गोपाल..हमें ऐसी तो उम्मीद़ नहीं थी।
इस राह पे लाकर,अब उस डग़र गया कोई।।
Saturday, January 9, 2010
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