Sunday, January 3, 2010

दुनियाँ तेरी उस पार....

तू उलझा इस पार मुसाफिऱ,दुनियाँ तेरी उस पार।
बिऩ माली गुलश़न जैसा,तेरा सूना पड़ा संसार।।मुसाफिर दुनियाँ..

तेरे अपने रोते तुझ बिन,कटती रातें तारे गिन-गिन।
ओढ़ते आशा,बहाने बिछाते,आँसू पीते,सपने खाते ।
समय सरकता सिसक-सिसक कर,करते तेरा इन्तजार।।मुसाफिर दुनियाँ..

खोज़ रहा तू सुख के साधन,छोड़ आया पीछे सारा धन।
उन आँखों में आँसू भरकर,अपने दिल पर पत्थर रखकर।
सपनों के पीछे-पीछे , तू करता हाहाकार ।। मुसाफिर दुनियाँ..

सोच तनिक तूने क्या पाया,देख पलट के क्या छोड़ आया।
छोड़ दौड़ना दौड़ ये अन्धी,लौट जा,मुड़ जा,वापस अब भी।
हो जाए फिर से गुलशऩ..गोपाल..तेरा गुलज़ार ।। मुसाफिऱ दुनियाँ..

No comments:

Post a Comment