वादे पे किसी के अब भी, एतबार सा क्यूँ है।
दिल़ आज़ भी किसी का तलबग़ार सा क्यूँ है।।
यूँ तो हमें नहीं है,किसी का भी इन्तजाऱ।
फिर भी ये दिल़ न जाने,बेक़रार सा क्यूँ है।।
अब़ तो किसी आहट़ पे नहीं चौंकते हैं हम।
फिर भी कहीं इक़ भरम बरक़रार सा क्यूँ है।।
है ज़िन्दगी जबकि नाउम्मीदी के हवाले।
उम्मीद़ के घोड़े पे,दिल़ सवार सा क्यूँ है।।
हर चेहरे को पहचानते फिरते हैं हम..गोपाल..।
अब भी वही चेहरा,हमें दरक़ार सा क्यूँ है।।
Sunday, January 10, 2010
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बहुत ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteSushil kr Sudhanshu
gopal ji ap bahut khoob likhte hain.. bahut achha .. keep it up..
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