भूल जाओ और याद़ न रखो, कहना है आसान।
प्यार-मुहब्बत़ क्या समझे,कोई पत्थर-दिल़ इन्सान।।
ज़ान-बूझकर कोई किसी से प्यार नहीं है करता।
पहली नज़र में हो जाता है,ज़ादू दिल़ पर इसका।
चुपके से दिल़ का मेहमाँ,बन जाता कोई अनज़ान।। प्यार-मुहब्बत़।।
लगने लगते दिल़ को,जीवन के हर रंग सुहाने।
जीने का अन्दाज़ बदल जाता है, क्यूँ ना जाने।
होती दुनियाँ के सुन्दरता की असली पहचान ।। प्यार-मुहब्बत़।।
नहीं ज़रूरी है ये कि हम़ साथ गुज़ारें जीवऩ।
प्यार किया तो किया किसी को,करते रहेंगे हरदम़।
प्यार में कोई शर्त न होती,होता है बलिदाऩ ।। प्यार-मुहब्बत़।।
होती तऩ की हवस़ जहाँ,हो वहीँ जुनूँ पाने का।
प्याऱ नाम है देने का,और किसी के हो जाने का।
समझे प्यार हवस़ को जो,..गोपाल..बड़ा नादान।।प्यार-मुहब्बत़।।
Thursday, January 7, 2010
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