हाले-दिल क्या है,बताएँ, कभी मिलो तो सही।
दिल का हर ज़ख़्म दिखाएँ,कभी मिलो तो सही।।
कैसे जीते हैं,ज़ुदाई में, आह भर-भर कर।
तुम्हें एहसास दिलाएँ,कभी मिलो तो सही।।
बड़ा आसान था यूँ तो, दिल का लेना-देना।
कब तलक़ तन्हा निभाएँ,कभी मिलो तो सही।।
वक़्त रुकता नहीं यहाँ, कभी किसी के लिये।
ये उम्र यूँ ही न जाए, कभी मिलो तो सही।।
रह गये आज हम,दरिया के किनारे बनकर।
आओ शैलाब उठाएँ,कभी मिलो तो सही ।।
आखिर इस रिश्ते को,कोई तो शक़्ल दें..गोपाल..।
इसे अन्ज़ाम पे लाएँ, कभी मिलो तो सही ।।
Friday, April 30, 2010
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आपके लेखन ने इसे जानदार और शानदार बना दिया है....
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