दिल की नादानी पे,ख़ुद को न यूँ कोसा करिए।
सूखते ज़ख़्म के छाले , न कुरेदा करिए ।।
दिल तो हर वक्त, बहकने का बहाना खोजे।
ये बहकता रहेगा, लाख समेटा करिए ।।
कहाँ जाएंगे आप,इस शहर में कौन अपना है?
कोई खिड़की न खुलेगी, खटखटाया करिए ।।
ज़िग़र का सारा लहू भी पिला दिया जिसको।
वो ही अपना न हुआ,किसपे भरोसा करिए ?।
खुशी तो बेवफ़ा है, बेवफ़ा से क्या उम्मीद ?
साथ चलते हैं ग़म इनका ही भरोसा करिए।।
दर्दे-दिल अश्क़ बनके ढलते हैं, ढलने दीजे।
इन आसुओँ को,यूँ पलकों पे न रोका करिए।।
कई..गोपाल.. हैं तबाह,शराफ़त् में आज।
ये शराफ़त् है तबाही का शबब,क्या करिए ?।
Friday, April 16, 2010
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