जीवन के संग चलते सुख-दु:ख,आशा और निराशा।
फिरभी ऐसा कौन, जिसे ना जीवन की अभिलाषा ।।
सुख में हँसा उछलकर,दु:ख में फूट-फूट कर रोया।
जो कुछ भी पाया, सब भूला, याद रखे जो खोया।
जितना भी मिल जाये,उससे अधिक की रहे पिपासा।। फिरभी ऐसा कौन..
कितना भी संघर्ष भरा हो, जीवन का पथ फिर भी।
चलता ही जाता है मानव,उठ-उठ,गिर-गिर कर भी।
जबतक चलती स्वाँस वक्ष में, तबतक चले तमाशा।। फिरभी ऐसा कौन..
दु:ख की तपती दोपहरी में,इक़ पल सुख की छाया।
सूखी रेत में ओँस की बूँदें, देख-देख मुस्काया ।
मृगत्रृष्णा के पीछे भागे, सारा जीवन प्यासा ।। फिरभी ऐसा कौन..
जीने का उद्देश्य नहीं कुछ, फिरभी जिये जाता है।
घूँट-घूँट जीवन का विष,बस् यूँ ही पिये जाता है।
ना कोई रंग-उमंग-तरंग,ना रही कोई जिज्ञासा ।। फिरभी ऐसा कौन..
जीवन का अस्तित्व बचाने के हित,किये न क्या-क्या।
अच्छा ना कर पाया कुछभी, जो तो बुरा बन बैठा।
निकल पड़ा..गोपाल..विद्रुप हो,मन में लिये हताशा।। फिरभी ऐसा कौन..
Thursday, April 1, 2010
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