हालात् न बदले मेरे,दुनियाँ बदल गई।
हाथों से ये तमाम ज़िन्दग़ी निकल गई।।
मैं जहाँ भी गया, परेशानी ही चली साथ।
ख़्वाहिश रही ख़्वाहिश ही,दिल में रह गए अरमान।
तक़दीर की दलदल,हरेक हसरत् निगल गई।। हाथों से ये...
इस वक़्त की पेचीदग़ी,समझा न था अभी।
फ़ितरत् के दिलफ़रेब रंग,देखा न था अभी।
सम्भला भी नहीं था,कि हर ख़ुशी फिसल गई।। हाथों से ये...
जिससे मिला,अपनी परेशानी मुझे दे दी।
एहसान में अपनी निगेबानी मुझे दे दी ।
दुनियाँ दुहाई फ़र्ज़ की दे-दे के छल गई।। हाथों से ये...
जाना नहीं कि है क्या,जवानी की उछल-कूद।
बचपन से बुढ़ापे में,सीधे कर गया मैं कूच ।
यूँ बोझ ज़िम्मेदारियों की, सर पे ढल गई।। हाथों से ये...
जी-जी के मरा हूँ,और मर-मर के जिया हूँ।
तरसा हूँ, फिरभी सब्र का पैमाना पिया हूँ ।
..गोपाल..दिल ज़लाया,ज़िन्दग़ी ही जल गई।। हाथों से ये...
Saturday, April 24, 2010
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ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
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