Saturday, March 27, 2010

याद बरसों जो आते रहे....

टूट कर दिल ने चाहा जिन्हे,याद बरसों जो आते रहे।
ज़ख्म बन-बन के चुभते रहे,दर्द बनके सताते रहे ।।

हाय रे कमनसीबी मेरी,मिलके बिछड़े तो फिर ना मिले।
वक़्त ने ऐसे मारा कि हम,आज तक चोट खाते रहे ।।

हम खड़े आह भरते रहे, वो गली से ग़ुज़रते रहे।
इस तरफ़ दिल कसकता रहा,और वो मुस्कुराते रहे।।

अब ग़िला क्या करें उनसे हम,अबतो सबकुछ फ़ना होगया।
हैं हक़ीक़त किसी और के,जिनके सपने हम सजाते रहे।।

याद करना मुनासिब नहीं,भूल पाना भी मुमक़िन नहीं।
जितना..गोपाल..भूला किये,और भी याद आते रहे।।

No comments:

Post a Comment