Monday, March 15, 2010

मैं कहीं भी रहूँ....

रंज में,ग़म में,अन्धेरों में,उज़ालों में रहूँ।
मैं कहीं भी रहूँ,तेरे ही ख़्यालों में रहूँ ।।

किसी मुक़ाम,किसी मोड़,किसी मन्ज़िल पे।
वक्त की ग़र्दिशों,हालात् के जालों में रहूँ ।।

मैं तेरे दिल में हूँ,नहीं हूँ,कोई बात नहीं।
तेरी नज़र में,तरे चाहने वालों में रहूँ ।।

तेरी यादों के सिवाय,कुछ भी मेरे पास नहीं।
तेरी यादें भी भुलादूँ,तो किस तरह मैं रहूँ।।

सफ़र ये उम्र का,अब यूँ कटे शायद..गोपाल..।
तेरी हसरत् लिये,मैं आख़िरी सफ़र में रहूँ।।

No comments:

Post a Comment