अबकी बार चुनाव में,ऐसी बही बयार।
नेताओं को मिल रहे,जूतों के उपहार।।
जनता को भी क्या कहें, बूझे ना जाने।
एक चला जिस राह पर, पीछे चल निकले।
जिसे भी देखो चढ़ रहा,जूतों का ही बुख़ार।। नेताओं को मिल रहे..
नेता भी तो ढीठ हैं, हिम्मत् ना हारें।
चाहे जनता जितने जूते,गिन-गिन के मारे।
एक बार जूते सही, पाँच बरस सरकार।। नेताओं को मिल रहे..
उछले-कूदे,सींग दे,और चलावे लात।
फिर पीछे थक़-हार कर,दूध की दे सौग़ात्।
जनता दुधारू गाय है,नेता हैं होशियार।। नेताओं को मिल रहे..
नेता जूताखोर हो,जनता रहे गवाँर।
फिर तो भइया हो गया,देश का बन्टाधार।
लोकतन्त्र के नाम पर,बस् जूतम्-पैज़ार।। नेताओं को मिल रहे..
हाथ अपने जब वोट का,इतना बड़ा हथियार।
अनपढ़,लम्पट,बेईमानों को चुनते क्यों हैं यार?
अपराधी हम भी हुए,चुनी ग़लत् सरकार।। नेताओं को मिल रहे..
Monday, February 8, 2010
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