Sunday, February 7, 2010

हसरत् है दिखा जाऊँ....

मैं अभी क़फ़स में हूँ,मेरा ग़र्दिश में है सितारा।
कि मैं आऊँगा फलक़ पे,एक रोज फिर दुबारा।।

हालात् की हवाएँ,चाहे लाख सर पटक लें।
तूफ़ान से डर जाए,वो दिल नहीं हमारा।।

मन्ज़िल को चलपड़े हैं,मन्ज़िल पे ही रूकेंगे।
परवाह नहीं, जितना भी दूर हो किनारा।।

न सज़ा कुबूल हमको,ग़ुमनाम ज़िन्दग़ी की।
हसरत् है दिखा जाऊँ,दुनियाँ को कुछ नज़ारा।।

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