Thursday, February 4, 2010

उनकी आहट ज़रा हो गई....

उनकी आहट ज़रा हो गई।
कितनी रंगीँ फ़िज़ा हो गई।।

हर तरफ ख़ुशनुमा सा लगे।
जैसे रुत् फिर जवाँ हो गई।।

हर कली गुन-गुना सी उठी।
मद़माती ह़वा हो गई।।

हस़रतों ने भी ली करवटें।
हऱ तमन्ना ज़वाँ हो गई।।

धड़कनें बेतहासा हुई ।
मौज़ दिल़ की ऱवाँ हो गई।।

हम़ भी यूँ बावले से हुए।
जैसे इक़ बुत् में ज़ाँ हो गई।।

पल़ में ये आलमे-ज़िन्दग़ी।
क्या से..गोपाल..क्या हो गई।।

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