उनकी आहट ज़रा हो गई।
कितनी रंगीँ फ़िज़ा हो गई।।
हर तरफ ख़ुशनुमा सा लगे।
जैसे रुत् फिर जवाँ हो गई।।
हर कली गुन-गुना सी उठी।
मद़माती ह़वा हो गई।।
हस़रतों ने भी ली करवटें।
हऱ तमन्ना ज़वाँ हो गई।।
धड़कनें बेतहासा हुई ।
मौज़ दिल़ की ऱवाँ हो गई।।
हम़ भी यूँ बावले से हुए।
जैसे इक़ बुत् में ज़ाँ हो गई।।
पल़ में ये आलमे-ज़िन्दग़ी।
क्या से..गोपाल..क्या हो गई।।
Thursday, February 4, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment