है वक़्त की जो मर्ज़ी,हर हाल में होना है।
हालात् के हाथों का, इन्सान खिलौना है।।
तू लाख बचा दामन,छीँटे तो पड़ेंगे ही।
तक़दीर की मर्ज़ी है,बेआबरू होना है ।।
तू सोचले चाहे कुछ,तू चाह ले चाहे कुछ।
ये वक़्त के ऊपर है,तेरे साथ जो होना है।।
मझधार से कैसा डर,क्या ख़ौफ़ भवँर का जब।
तूफाँ को तेरी क़िश्ती,साहिल पे डुबोना है।।
क्या फ़ागुन, क्या सावन,हर रुत् को सताना है।
फागुन को जलाना है,सावन को भिगोना है ।।
वैसे तो फ़ितरत् ये, इन्साँ की पुरानी है ।
जितना भी मिल जाये,फिर भी उसे रोना है।।
मोहलत् तो बहुत दी थी,यूँ वक़्त ने हमको भी।
..गोपाल..की पर आदत्,पा-पा कर खोना है ।।
Friday, May 7, 2010
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हर रंग को आपने बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्तुति ।
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