Saturday, December 26, 2009

कहीं ऐसा ना हो....

कोई हसरत़् ना रहे,कोई तमन्ना ना रहे।
हरेक भरम़ मिटालो,कोई गिल़ा ना रहे।।
तमाम गुन्जाइशों की हद़ को पार कर जाओ।
मिटादो ऐसे,कि मेरा कोई निशाँ ना रहे ।।
मिटादो नाम ही इनसानियत् का दुनियाँ से।
कहीँ जहाँ में,मुहब्बत् का फल़सफा ना रहे।।
कुछ इसतरह ग़ज़ब करो,कि कयामत् आए।
ज़मीं-ज़मीं,ये आसमाँ भी,आसमाँ ना रहे।।
तुम्ही बन जाओ खुद़,खुदा अब इस खुदाई के।
खुदाई में तेरे आगे खुदा,खुदा ना रहे ।।
करो,जो कर सको..गोपाल..,मगऱ याद़ रखो।
कहीँ ऐसा ना हो,सब हों,तेरा पता ना रहे।।

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