हदे नज़र से मेरी,दूर सवेरा है बहुत।
जिन्दगी अब तेरे सफऱ में,अंधेरा है बहुत।।
अब इस सियाह़ रात़ की सहऱ नहीं शायद़।
रोशनी जुगनुओं ने,यूँ तो बिखेरा है बहुत।।
ये अन्धेरा ही अब़ फिलहाल़ मुकद्दऱ है मेरा।
हरेक मुकाम़ पे, इसने मुझे घेरा है बहुत।।
दिल़ किसी का दुखे हमसे,ये न चाहा हमने।
फिरभी दुनियाँ ने,दुखाया दिल़ मेरा है बहुत।।
ऐ गमे-जिन्दगी , तेरा ही सहारा है हमें।
ज़ख्मे-दिल़ को,ख्यालो-ख्वाब ने छेड़ा है बहुत।।
आज़ जब मेरे पास कुछ भी नहीं,तो तूँ है।
दिले-नाचीज़ पर,एहसाऩ ये तेरा है बहुत।।
इसेक वक्त़ ने,क्या-क्या न मेरा लूट लिया।
..गोपाल..जानलो,ये वक्त़ लुटेरा है बहुत।।
Monday, December 28, 2009
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