Saturday, December 26, 2009

गुजारे साथ जो दिन....

वतन से दूर,घर की याद़ सताती है बहुत।
गुजारे साथ जो दिन,उनकी याद़ आती है बहुत।।

गाँव के मिट्टी की खुश़बू,जहाँ गुजरा बचपन।
खेत-खलिहान,चौबारे,वो द्वार,घर-आँगन।
वो धूल उड़ाती गली,अब भी बुलाती है बहुत।।गुजारे साथ जो दिन....

सुनहरी सुबह़,उजली दोपहऱ,गुलाबी शाम़।
अंधेरी रात,झिलमिलाते वो जुगनूँ तमाम।
बरसते सावऩ की रिमझिम़,मन को भाती है बहुत।।गुजारे साथ जो दिन....

धान-गेहूँ की बालियाँ,वो रसीला गन्ना।
लटकते,मीठे,पके आम,बगीचा अपना।
गुज़र के ठन्डी हवा इनसे,गुनगुनाती है बहुत।।गुजारे साथ जो दिन....

प्यार वो छोटों-बड़ों का,बहुत दिल़ को खींचे।
मगर मजबूरी है,कुछ सपने हैं अपने पीछे।
..गोपाल..अपनों की हर याद रुलाती है बहुत।। गुजारे साथ जो दिन....

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