वो नन्हे से पाँव तुम्हारे,नन्हे-नन्हे हाथ।
कहाँ गये बचपन मेरे,तुम छोड़ के मेरा साथ।।
कहाँ गई वो किलकारी,वो चलना सम्भल-सम्भल के।
जिद़ करना हर चीज की,मचल-मचल के,उछल-उछल के।
मिले न जबतक,रोना आँखों पर मल-मल के हाथ।। कहाँ गये बचपन....
माँ की वो मीठी लोरी,बाबा की गोद वो प्यारी।
मेले में जाने की होती,हपतों से तैयारी।
केले और मिठाई,गुब्बारे लहराते हाथ ।। कहाँ गये बचपन....
जाड़ों की वो धूप रसीली,गर्मी की वो शाम़।
खेल के आगे समय नहीं कि करलें कुछ आराम।
दौड़ पड़े बारिस में भीगने,जब होती बरसात़।। कहाँ गये बचपन....
हरे-भरे खेतों से होकर,रोज़ वो पढ़ने जाना।
वो गन्ने और मटर की फलियाँ,तोड़-तोड़ कर खाना।
करते चलना मस्ती में,वो कहाँ-कहाँ की बात ।। कहाँ गये बचपन....
वो होली का हल्ला,रंग-अबीर,ढोलक की थाप।
दीवाली के दीये और पटाखों की आवाज़ ।
कहाँ गये वो पल छोड़कर,यादों की सौगात़।। कहाँ गये बचपन....
ना कोई दुश्मनी,ना कोई चिन्ता,ना कोई गम़।
कभी झगड़ना,कभी लिपटना,खुश़ रहना हरदम़।
नन्हे मन में थे,नन्हे कुछ सपने,कुछ जज्बात़।। कहाँ गये बचपन....
हम चले आये दौड़ते,उन सपनों के पीछे।
जाने कब चुपके से,तुम रह गये छोड़कर पीछे।
ध्यान आया,जब देखा खुद को,बदल चुकी हर बात़।। कहाँ गये बचपन....
सब कुछ मेरा लेके भी,कोई तुमको लौटादे।
उन्ही दिनों में वापस करदे,फिर से हमें मिलादे।
काश़ ये मुम़किन होता गऱ, ..गोपाल..तो फिर क्या बात़।। कहाँ गये बचपन....
Thursday, December 24, 2009
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