इतना क्या काफी नहीं कि हम भी आदमजात हैं।
पास अपने भी है दिल,हैं धड़कनें,जज़्बात् हैं ।।
ज़िन्दग़ी का हक़्,हमें भी,कुछ तो मिलना चाहिए।
हमभी बन्दे हैं उसीके, जिसकी कायेनात् है ।।
हर सुबह को देखते हैं, हम बड़े उम्मीद से ।
शाम तक पाते हैं कि बस् एक से हालात् हैं।।
रखलो अपने पास तुम, सारे जहाँ की नेमतें।
पर हमारी रोटियाँ भी छीनलो,कोई बात है!?
वैसे तेरे साथ,अपनी हैसियत् ही क्या रही!
जेब में खोटी अठन्नी,बस् यही औकात् है।।
हैसियत् ऊँची हुई, इन्सान छोटे हो गये ।
क्या कहें..गोपाल..किसको,हर ग़ली की बात है।।
Wednesday, June 30, 2010
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