भले तुम आसमाँ हो जाओगे,और हम ज़मीँ होंगे।
सभी होंगे तेरी महफ़िल में लेकिन,हम नहीं होंगे।।
बढ़ालो जितना भी तुम,दब-दबा अपना ज़माने में।
मगर उस दायरे में आने वाले, हम नहीं होंगे ।।
होंगे सर झुकने वाले,यूँ बहुत से,तेरे सज़दे में।
मगर तेरे लिए नपते थे जो गर्दन,नहीं होंगे ।।
ये माना मेरे बिन भी,तेरे जलवे कम नहीं होंगे।
मग़र तेरी अदा में,अब वो पेंचो-खम् नहीं होंगे।।
चलो अच्छा हुआ,हमको भी जीना आगया,तुम बिन।
न कोई ज़ख्म ऐसा,जिसके कि मरहम् नहीं होंगे ।।
यहाँ कुछ देर में, सबको ज़माना भूल जाता है ।
कल को तुम भी नहीं होगे..गोपाल..हम नहीं होंगे।।
Thursday, June 10, 2010
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चलो अच्छा हुआ,हमको भी जीना आगया,तुम बिन..न कोई ज़ख्म ऐसा,जिसके कि मरहम् नहीं होंगे. bahut khoob Gopal ji.
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteकविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !