बुलन्द,हक़ की तुम आवाज़ करोगे कैसे ?
ज़ुल्म का, बढ़ के एतराज़ करोगे कैसे ?।
हरेक अन्जाम भुगतने का न माद्दा हो अगर।
ये बताओ कि फिर आग़ाज़ करोगे कैसे ?।
दिल में,तूफ़ान से टकराने का जज़्बा ही नहीं।
खुले आकाश में, परवाज़ करोगे कैसे ?।
यूँ समन्दर की जो गहराईयों से डरते रहे।
फ़िर कहो! साहिलों पे राज करोगे कैसे?।
..गोपाल..यूँ रही आदत,जो डर के जीने की।
खुद को साबित, एक जाँबाज़ करोगे कैसे ?।
Thursday, June 24, 2010
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