Wednesday, June 30, 2010

हम भी आदमजात हैं....

इतना क्या काफी नहीं कि हम भी आदमजात हैं।
पास अपने भी है दिल,हैं धड़कनें,जज़्बात् हैं ।।

ज़िन्दग़ी का हक़्,हमें भी,कुछ तो मिलना चाहिए।
हमभी बन्दे हैं उसीके, जिसकी कायेनात् है ।।

हर सुबह को देखते हैं, हम बड़े उम्मीद से ।
शाम तक पाते हैं कि बस् एक से हालात् हैं।।

रखलो अपने पास तुम, सारे जहाँ की नेमतें।
पर हमारी रोटियाँ भी छीनलो,कोई बात है!?

वैसे तेरे साथ,अपनी हैसियत् ही क्या रही!
जेब में खोटी अठन्नी,बस् यही औकात् है।।

हैसियत् ऊँची हुई, इन्सान छोटे हो गये ।
क्या कहें..गोपाल..किसको,हर ग़ली की बात है।।

Sunday, June 27, 2010

इन्साफ़ इसका अन्धा.....

इन्साफ़ इसका अन्धा,क़ानून बेसहारा।
सारे जहाँ से अच्छा,हिन्दोस्ताँ हमारा।।

क़ानून के हैं बाजू ,ये ख़ाक़ी वर्दी वाले।
रिश्वत् बग़ैर किसकी है मज़ाल कुछ कराले।।
इन्सान क्या है,इनसे भगवान भी है हारा।। सारे जहाँ....

य़े काले कोट वाले,इन्साफ़ की हैं आँखें।
सच्चाई इनको रोती,इन्साफ़ बेच खाते।।
इनसे लहू-लुहाँ है, क़ानून की हर धारा।। सारे जहाँ....

जिनकी क़लम से छूटे,तलवार को पसीना।
हर रोज चीरते हैं, इन्साफ़ का ये सीना ।।
ये पत्रकार,फिरभी इन्साफ़ इनका नारा ।। सारे जहाँ....

हैं देश को चलाते, नेताजी खादी वाले ।
करते हैं नित् घोटाले,बोफोर्स और हवाले।।
स्कूटर पे लाते,नौ सौ करोड़ का ये चारा।। सारे जहाँ....

इतने ही नहीं, जाने हैं और कितने सारे।
हैं नोच रहे,"सोने की चिंड़िया"के पंख प्यारे।।
..गोपाल..दिलादो याद इन्हें,इतिहास तो हमारा।। सारे जहाँ....
(ये मेरा व्यक्तिगत् विचार है,इसके अपवाद् भी हैं)

Thursday, June 24, 2010

बुलन्द हक़ की तुम आवाज़ करोगे कैसे?...

बुलन्द,हक़ की तुम आवाज़ करोगे कैसे ?
ज़ुल्म का, बढ़ के एतराज़ करोगे कैसे ?।

हरेक अन्जाम भुगतने का न माद्दा हो अगर।
ये बताओ कि फिर आग़ाज़ करोगे कैसे ?।

दिल में,तूफ़ान से टकराने का जज़्बा ही नहीं।
खुले आकाश में, परवाज़ करोगे कैसे ?।

यूँ समन्दर की जो गहराईयों से डरते रहे।
फ़िर कहो! साहिलों पे राज करोगे कैसे?।

..गोपाल..यूँ रही आदत,जो डर के जीने की।
खुद को साबित, एक जाँबाज़ करोगे कैसे ?।

Monday, June 21, 2010

सोचा है, किसी और से अपना दर्द बाँटेंगे....

मौत बन-बन के मुझे, ज़िन्दग़ी सताती है।
मौत आती नहीं,बस्! याद उनकी आती है।।
चैन आता है कहाँ ? नींद कहाँ आती है ?
अब तो बस्! साँस आती है,साँस जाती है।।
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दिल में जज़्ब रखेंगे,ख़ुद झेलेंगे,काटेंगे।
सोचा है,किसी और से अपना दर्द न बाँटेंगे।।

किसी के हँसते-खिलते चेहरे पर,क्यों ग़म मल दें?
क्यों किसी और को अपने कर्म और क़िस्मत् का फल दें?
बो रखी है फ़सल जो ग़म की, दर्द ही काटेंगे।। सोचा है....

जिसका जितना भी हक़ हमपे,अदा तो करना है।
इसके पीछे जो भी ग़ुज़रे, हँस के सहना है ।
नहीं करेंगे ग़िला कोई,ना मोहलत् मांगेंगे।। सोचा है....

दिल में ज़्यादा दर्द उठा तो थोड़ा रो लेंगे।
दाग़ हसरतों के सारे,अश्क़ों से धो लेंगे ।
वक़्त हो कितना भी भारी,हम तन्हाँ काटेंगे।। सोचा है....

सतरंगे सपनों के, सभी घरौंदे टूट गए ।
समय की पग़डन्डी में,बरसों पीछे छूट गए।
अब..गोपाल..के बस में क्या,जो वापस लौटेंगे।।सोचा है....

Thursday, June 10, 2010

तेरी महफ़िल में लेकिन हम नहीं होंगे....

भले तुम आसमाँ हो जाओगे,और हम ज़मीँ होंगे।
सभी होंगे तेरी महफ़िल में लेकिन,हम नहीं होंगे।।

बढ़ालो जितना भी तुम,दब-दबा अपना ज़माने में।
मगर उस दायरे में आने वाले, हम नहीं होंगे ।।

होंगे सर झुकने वाले,यूँ बहुत से,तेरे सज़दे में।
मगर तेरे लिए नपते थे जो गर्दन,नहीं होंगे ।।

ये माना मेरे बिन भी,तेरे जलवे कम नहीं होंगे।
मग़र तेरी अदा में,अब वो पेंचो-खम् नहीं होंगे।।

चलो अच्छा हुआ,हमको भी जीना आगया,तुम बिन।
न कोई ज़ख्म ऐसा,जिसके कि मरहम् नहीं होंगे ।।

यहाँ कुछ देर में, सबको ज़माना भूल जाता है ।
कल को तुम भी नहीं होगे..गोपाल..हम नहीं होंगे।।

Friday, June 4, 2010

हमें बनना है.....

हमें बनना है, बिगड़ने की बात क्यों सोचें ?
अभी सवँरना है,उजड़ने की बात क्यों सोचें ?|
आओ इस ग़ुलशन को भर दें,अमन के फूलों से।
मिल के रहना है,बिखरने की बात क्यों सोचें ?।1||

किसी भाषण की ज़रूरत् नहीं होती इनको।
कर्मयोगी के तो बस् कर्म बोला करते हैं।।
समय के सीने पर,बनकर अमिट हस्ताक्षर।
ये अपने बाद भी,दुनियाँ में रहा करते हैं ।।2।।