Saturday, March 27, 2010

याद बरसों जो आते रहे....

टूट कर दिल ने चाहा जिन्हे,याद बरसों जो आते रहे।
ज़ख्म बन-बन के चुभते रहे,दर्द बनके सताते रहे ।।

हाय रे कमनसीबी मेरी,मिलके बिछड़े तो फिर ना मिले।
वक़्त ने ऐसे मारा कि हम,आज तक चोट खाते रहे ।।

हम खड़े आह भरते रहे, वो गली से ग़ुज़रते रहे।
इस तरफ़ दिल कसकता रहा,और वो मुस्कुराते रहे।।

अब ग़िला क्या करें उनसे हम,अबतो सबकुछ फ़ना होगया।
हैं हक़ीक़त किसी और के,जिनके सपने हम सजाते रहे।।

याद करना मुनासिब नहीं,भूल पाना भी मुमक़िन नहीं।
जितना..गोपाल..भूला किये,और भी याद आते रहे।।

Friday, March 19, 2010

जीवन का दस्तूर हुआ....

खुशियाँ कम,ग़म ज़्यादा सहना,जीवन का दस्तूर हुआ।
अपने हालातों के हाथों, मैं कुछ यूँ मजबूर हुआ ।।

हर ज़िम्मेदारी ढोई...., हमने तो ज़िम्मेदारी से ।
फ़र्ज़ की हद् तक,फ़र्ज़ निभाना,शायद यही कुसूर हुआ।।

ख़ुदग़र्ज़ी ने,ख़ुद्दारी को, घायल,लहूलुहान किया।
हसरत् उजड़ी,सपने बिखरे,दिल भी चकनाचूर हुआ।।

जीवन की आपा-धापी में,ख़ुद को वक़्त न दे पाया।
जीवन का एक लम्बा हिस्सा,यूँ ही गया,फ़िज़ूल हुआ।।

मेरी आँखों ने भी देखे थे कुछ ख़्वाब रुपहले से।
आँख खुली तो सपनों का सारा मंज़र क़ाफ़ूर हुआ।।

अब बस् इक मौक़ा,मैं वक़्त से माँग रहा..गोपाल..मग़र।
लगता है,कि अब मैं क़ाफ़िला-ए-वक़्त से ज़्यादा दूर हुआ।।

Wednesday, March 17, 2010

तुम ख़ुदा हुए....

जिस दिन से जान-ए-ज़ाँ हमसे,तुम ज़ुदा हुए।
हमदर्द हुए दर्द, कि ग़म मेहरबाँ हुए ।।

यूँ ही साथ चलते-चलते तुम,किस मोड़ मुड़ गये।
कितनी सदाएँ दीं मग़र,तुम जाने कहाँ हुए ।।

तेरे ही साथ, हमसे ख़ुशी भी बिछड़ गई।
फिर तेरे बाद,ख़ुशियों के मौसम कहाँ हुए।।

दिल में मेरे अरमानों की,ऐसी चिता जली।
जज़्बात् जल के ख़ाक़ हुए,सपने धुआँ हुए।।

ग़र्दिश में वक़्त की,हमारा ग़ुम हुआ वज़ूद।
पहचान तलक ना बची, यूँ बेनिशाँ हुए ।।

हम कबकी छोड़ बैठे थे,जीने की ज़ुस्तज़ू।
पर शायद, तेरे इन्तज़ार में यहाँ हुए ।।

हम मर गये तो मर गये,पर तुम नहीं मिले।
..गोपाल.. आदमी ना रहे,तुम ख़ुदा हुए ।।

तो किधर जाऊंगा....

तूने दिल से जो निकाला,तो किधर जाऊंगा।
तेरा बीमार हूँ,मैं वैसे ही मर जाऊंगा ।।

फेर ली आँख,नज़र से न गिरा,मैं ख़ुद ही।
बनके आँसू,तेरी पलकों से उतर जाऊंगा ।।

मेरी बर्बादियों से,गर् तू हो सके आबाद।
बारहाँ शौक़ से,ऐ दोस्त मैं मर जाऊंगा।।

इतना टूटा हूँ, तेरे ईश्क़ में, तेरे ग़म में।
मैं अपने ख्वाबों के मानिन्द बिखर जाऊंगा।।

लाख भूलोगे मग़र,ग़ुज़रा हुआ क़ल हूँ तेरा।
याद बन-बन के,ख्यालों में उभर जाऊंगा।।

अगर मिट भी गया,तो बन के हवा का झोंका।
तेरी गली से, हरेक शाम ग़ुज़र जाऊंगा।।

चला जाऊंगा मैं इस दुनियाँ से,फिर भी..गोपाल..।
तेरी राहों में,बिछा के मैं नज़र जाऊंगा ।।

Monday, March 15, 2010

तो तुम याद आए....

जब भी निकला फ़लक पे चाँद,तो तुम याद आए।
सज उठी तारों की बारात्,तो तुम य़ाद आए ।।

गुनगुनाती हुई हवा,दिल को सहला सी गई।
गुदगुदाने लगे एहसास,तो तुम याद आए ।।

रात की रानी के फूलों की महक़ से आई।
तेरे दामन की महक़ याद,तो तुम याद आए।।

बौर लगने लगे, जब आम के बगीचे में।
और कोयल नें की ग़ुहार,तो तुम याद आए।।

भीगी,लहराती,खुली ज़ुल्फों में कंघी डाले।
ये दोपहर में लिकला कौन,कि तुम याद आए।।

छत् पे साया कोई, फ़िर शाम के अन्धेरे में।
करा गया तेरा ग़ुमान्,तो तुम याद आए ।।

..गोपाल..जब भी तेरी याद को छेड़ा मैनें।
चल पड़ी यादों की बारात्,यूँ तुम याद आए।।

मैं कहीं भी रहूँ....

रंज में,ग़म में,अन्धेरों में,उज़ालों में रहूँ।
मैं कहीं भी रहूँ,तेरे ही ख़्यालों में रहूँ ।।

किसी मुक़ाम,किसी मोड़,किसी मन्ज़िल पे।
वक्त की ग़र्दिशों,हालात् के जालों में रहूँ ।।

मैं तेरे दिल में हूँ,नहीं हूँ,कोई बात नहीं।
तेरी नज़र में,तरे चाहने वालों में रहूँ ।।

तेरी यादों के सिवाय,कुछ भी मेरे पास नहीं।
तेरी यादें भी भुलादूँ,तो किस तरह मैं रहूँ।।

सफ़र ये उम्र का,अब यूँ कटे शायद..गोपाल..।
तेरी हसरत् लिये,मैं आख़िरी सफ़र में रहूँ।।