Friday, July 23, 2010

..रब से कम, इन्सान से ज्यादा डरो....

किसका रोना रोने जाओ, किसकी बात करो।
इस दुनियाँ में,ऱब से कम,इन्सान से ज्यादा डरो।।

रब तो, जैसी करनी तेरी,वैसा फल देगा।
पर इन्साँ चाहेगा तो,बिना कर्म के फल देगा।
और किसी के कर्मों का हर्जाना आप भरो ।। इस दुनियाँ में।।

अच्छाई का बदला,बेशक्!रब अच्छा देगा।
पर इन्साँ की मर्ज़ी पर है, जो चाहे देगा।
सबकुछ उसके मूड पे है,तुम जीओ,चाहे मरो।। इस दुनियाँ में।।

क़दम-क़दम पे जाल बिछा है,किधर से निकलोगे?
मौका तो दे दो, फ़िर देखो, ख़ुद पर रोओगे ।
आज तो रब ख़ुद हैराँ है,..गोपाल..क्या आह भरो।। इस दुनियाँ में।।

2 comments:

  1. बहुत ही अच्छी रचना.....
    लेकिन बहुत ही दिनों बाद......

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