Tuesday, June 27, 2023

ना नीति, ना नीयत् ........

 ना नीति, ना नीयत, न ही ईमान रह गया।

इन्सानियत चली गयी, इन्सान रह गया।।

अब तो भले-बुरे में, कहॉ फ़र्क़ रह गया ।

अब बस् ये है , कि क्या नफ़ा-नुक़सान रह गया।।         

अब सच का सच बचाए रखना, सच में कठिन है।

सच आज ये सच देख , ख़ुद  हैरान  रह  गया ।।

Dedicated to Kashmiri Pandits-

हैरत् से ,देखता सा , मेज़बान रह गया ।

मालिक था जो क़ल, आज वो मेहमान रह गया।।

क़िलकारियाँ उजड़ गयीं, बस्ती बदल गई ।

सपनों का घरौंदा, खडा़ वीरान् रह गया ।।

दुनियाँ की पहली वादिये- ज़न्नत् है ,जहाँ से।

‘संतोष’ तो चला गया, ‘सलमान’ रह गया  ।।




 


No comments:

Post a Comment