क्या कहें, हर एक इन्साँ, रहनुमा लगता है अब।
इस जहाँ में अपना होना, बेवजह लगता है अब।।
उम्र भर हमने अदब से, अदब की तालीम ली ।
आज बेअदबी के आगे,अदना सा लगता है अब।।
आरज़ू में जिसकी , हमने दे दिये बरसों-बरस ।
उसका मिलना और न मिलना, एक सा लगता है अब।।
ज़िन्दगी का मानकर मक़सद,जो कुछ करते रहे ।
वो करना, और कुछ न करना, एक सा लगता है अब।।
उम्र भर हमको फ़िकर थी, राह ना छूटे कभी ।
जिसको देखो,राह बिन ही,दौड़ता लगता है अब।।
हुनरमन्दों के ज़हाँ में, हम ही ठहरे बेहुनर ।
दिल नहीं”गोपाल” अपना भी, यहाँ लगता है अब।।
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