बहुत बदल गये हालात् ,क्या किया जाए।
अब नहीं रह गयी वो बात् ,क्या किया जाए।।
कहाँ रही वो लियाक़त् ,वो उसूलो-अदबो- लिहाज।
न वो एहसास, न जज़्बात् , क्या किया जाए ।।
कहाँ से लाया जाए ढूंढ के,तहज़ीबो-तमीज़।
बड़े बेक़द्र ख्यालात् , क्या किया जाए ।।
फ़ायदे पर ही मुनहसर हुआ अब तो सब कुछ।
फ़र्ज़ की चलती नहीं बात,क्या किया जाए ।।
क़ायदों की यहाँ परवाह किसे है यारब।
तोड़ना फ़ख़्र की है बात, क्या किया जाए।।
हर तरफ दिख रहा समाज का अपराधीकरण।
लोग कहते इसे विकास, क्या किया जाए ।।
हमारी बेहतरी से बेहतर,उसकी बर्बादी।
..गोपाल..है मज़े की बात ,क्या किया जाए।।
अब नहीं रह गयी वो बात् ,क्या किया जाए।।
कहाँ रही वो लियाक़त् ,वो उसूलो-अदबो- लिहाज।
न वो एहसास, न जज़्बात् , क्या किया जाए ।।
कहाँ से लाया जाए ढूंढ के,तहज़ीबो-तमीज़।
बड़े बेक़द्र ख्यालात् , क्या किया जाए ।।
फ़ायदे पर ही मुनहसर हुआ अब तो सब कुछ।
फ़र्ज़ की चलती नहीं बात,क्या किया जाए ।।
क़ायदों की यहाँ परवाह किसे है यारब।
तोड़ना फ़ख़्र की है बात, क्या किया जाए।।
हर तरफ दिख रहा समाज का अपराधीकरण।
लोग कहते इसे विकास, क्या किया जाए ।।
हमारी बेहतरी से बेहतर,उसकी बर्बादी।
..गोपाल..है मज़े की बात ,क्या किया जाए।।
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