कैद लगती है, सजा लगती है ।
जिन्दगी अब बेमजा लगती है
सुकूने-दिल कहाँ तलाश करें।
बहार भी अब खिजा लगती है।।
हर तरफ आलमे-बेसब्री है।
घुटन भरी सी फिजा लगती है।।
रिश्ते अब निभने को मोहताज लगें।
बात पहले सी, कहाँ लगती है ।।
कौन से मोड.पर आपहुँचे हम।
अजनबी हर सै जहाँ लगती है।।
किससे पूछें अब यहाँ अपना पता।
सारी दुनियाँ गुमशुदा लगती है ।।
चलो ..गोपाल..अब उस राह चलें।
जाके हर राह जहाँ लगती है ।।
जिन्दगी अब बेमजा लगती है
सुकूने-दिल कहाँ तलाश करें।
बहार भी अब खिजा लगती है।।
हर तरफ आलमे-बेसब्री है।
घुटन भरी सी फिजा लगती है।।
रिश्ते अब निभने को मोहताज लगें।
बात पहले सी, कहाँ लगती है ।।
कौन से मोड.पर आपहुँचे हम।
अजनबी हर सै जहाँ लगती है।।
किससे पूछें अब यहाँ अपना पता।
सारी दुनियाँ गुमशुदा लगती है ।।
चलो ..गोपाल..अब उस राह चलें।
जाके हर राह जहाँ लगती है ।।
बढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteWelcome back Gopal ji
ReplyDeleteह्रिदय विदारक !!
ReplyDeleteअद्भुत ,अति सुंदर !
ReplyDeleteसचमुच ज़िंदगी कुछ ऐसी ही लगने लगी है .
ReplyDeleteकैद लगती है ज़िंदगी ...सचमुच मर्मस्पर्शी है ये रचना ।
ReplyDeleteHar mod par kya hoga yahi to life ki mistry hai. that is why life is so beautiful
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