Saturday, September 18, 2010

कितने नादाँ हो.....

कितने भोले हो,कितने नादाँ हो।
तुम नहीं जानते कि तुम क्या हो।।

तुम्हें पता नहीं ख़ुद की क़ीमत।
किसी के दिल हो,ज़िग़र हो,जाँ हो।।

क़द्र हीरे की, जौहरी जाने ।
ये ज़रूरी नहीं,सबको पता हो।।

ये ज़माना, अजीब जालिम है।
न दे, जिसकी जिसे तमन्ना हो।।

यूँ ही मिलजाए किसी को,जिसने।
भले उसकी क़दर न जाना हो ।।

बहाए कोई यूँ ही , गंगाजल ।
और कोई रूह-रूह प्यासा हो ।।

जहाँ के वास्ते, तुम "आम" होगे।
..गोपाल..के लिए,नूरे-ख़ुदा हो।।

Sunday, September 5, 2010

ज़रा मिलते रहिए.....

हँसे भी नहीं थे कि रोना पड़ा। कि अश्कों से दामन भिगोना पड़ा।
ख़ुशी की किरन भी न देखी अभी,कि ग़म के अन्धेरों में खोना पड़ा।।
मुरौव्वत् तो तूफ़ान ने कम न की,मग़र उसको मजबूर होना पड़ा।
नहीं चाहकर भी हरेक हाल में, उसे मेरी क़िश्ती डुबोना पड़ा ।।
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हमें बिछड़े हुई मुद्दत् , ज़रा मिलते रहिए।
दिल को मिलती रहे राहत्,ज़रा मिलते रहिए।।

वो आप क्या गए! कि दिन गए बहारों के।
मस्तियों-शोख़ियों भरे हसींन नज़ारों की ।
तन्हा-तन्हा है मुहब्बत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

कितने अरमानों से बस्ती बसाई थी दिल की।
मेरे सफ़र में आरज़ू नहीं थी, मन्ज़िल की ।
लहूलुहान है हसरत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

ज़िन्दग़ी में अब तो पतझड़ का ही बसेरा है।
जिधर भी देखिए, अन्धेरा ही अन्धेरा है ।
बड़ी ग़मगीन है तबियत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

ग़र मुनासिब न लगे, मिलना सरे-महफ़िल में।
हमें मिल लीजै इशारों मे, नज़र मे, दिल में।
..गोपाल..करके कुछ फ़ितरत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

Wednesday, September 1, 2010

बेबात की बात..........

जितनी चाहे, लिखो अर्जी।
होगा वही जो वक़्त की मर्ज़ी।।
जितने चाहे देखलो सपने। इतना तो है बस् में अपने।।
ये कर लेना,वो कर लेना। सोच-सोच कर खुश हो लेना।।
फ़र्ज़ी बारिस,फ़र्ज़ी छाता। सपनों में जीवन कट जाता।।
कोशिश भी करता है इन्साँ। पर क्या सबको मिलता मौका?।
फिर भी अजब निराली दुनियाँ,देखा करती सपने तब भी।। जितनी....

भरम पाल कर जीते जाना। फ़र्ज़ की चाह में,फ़र्ज़ निभाना।।
सपनों से दिल को बहलाना। इक़ टूटा, दूसरा सजाना।।
ख़ुद से ख़ुद ही बड़ाई ख़ुद की। पीठ ठोकना ख़ुद ही ख़ुद की।।
सच्चाई कुछ भी हो चाहे। पर वो माने,जो मन चाहे ।।
हाय! यही इन्साँ की फ़ितरत्,सच् को ही ठहराता फ़र्ज़ी।। जितनी....

कर्म करो निष्काम हमेशा। कभी करो ना फ़ल की चिन्ता।।
कभी ना हारे,कभी ना जीते। वक़्त कभी भी व्यर्थ न बीते।।
देखे,परखे,समझे,जाने। आँख मूँदकर कहा न माने।।
समय,व्यक्ति और स्थान देखले। कहीं भी कुछ करने से पहले।।
फिरभी सपनों में जीना है,तो..गोपाल..तुम्हारी मर्ज़ी ।। जितनी....