कितने भोले हो,कितने नादाँ हो।
तुम नहीं जानते कि तुम क्या हो।।
तुम्हें पता नहीं ख़ुद की क़ीमत।
किसी के दिल हो,ज़िग़र हो,जाँ हो।।
क़द्र हीरे की, जौहरी जाने ।
ये ज़रूरी नहीं,सबको पता हो।।
ये ज़माना, अजीब जालिम है।
न दे, जिसकी जिसे तमन्ना हो।।
यूँ ही मिलजाए किसी को,जिसने।
भले उसकी क़दर न जाना हो ।।
बहाए कोई यूँ ही , गंगाजल ।
और कोई रूह-रूह प्यासा हो ।।
जहाँ के वास्ते, तुम "आम" होगे।
..गोपाल..के लिए,नूरे-ख़ुदा हो।।
Saturday, September 18, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
क़द्र हीरे की, जौहरी जाने ।
ReplyDeleteये ज़रूरी नहीं,सबको पता हो।।
बहुत अच्छी पंक्तियां हैं...बधाई
http://veenakesur.blogspot.com/
अपनी बात - बढिया तरीके से कह दी.
ReplyDeletebahut achcha ...badhiya
ReplyDeleteछोटे लफ़्ज़ों में बयाँ बड़ा 'गोपाल',
ReplyDeleteख्यालों की दुनिया के फन्ने खाँ हो ..