Saturday, November 27, 2010

मेरी ज़िन्दग़ी के पीछे......

है कारवाँ ग़मों का,मेरी ज़िन्दग़ी के पीछे।
छुपे दर्द हैं हज़ारों,मेरी इक हँसी के पीछे।।

अश्के-लहू ढले हैं,बरसों मेरी नज़र से।
तरसा है मुद्दतों दिल,इक पल ख़ुशी के पीछे।।

हम दर्द के मारों को,तेरा प्यार ही था मरहम्।
कहीं दम् निकल न जाए,तेरी बेरुख़ी के पीछे।।

इतने बड़े जहाँ में, हम ही कमनसीब ठहरे।
हम तेरे पीछे-पीछे,तू और किसी के पीछे ।।

जो ख़ता हुई हो हमसे,मेरी जान माफ़ कर दो।
दुनियाँ भुलादी हमने, तेरी गली के पीछे ।।

तू है मरी इबादत्, तू मेरी आरज़ू है ।
लाखों सितम् सहे हैं,तेरी दोस्ती के पीछे।।

ये क्या सफ़र है? जिसकी,मन्ज़िल भी ख़ुद सफ़र है।
बनके हमसफ़र है..गोपाल..,सफ़र ज़िन्दग़ी के पीछे।।

4 comments:

  1. अश्के-लहू ढले हैं,बरसों मेरी नज़र से।
    तरसा है मुद्दतों दिल,इक पल ख़ुशी के पीछे।।
    शेर अच्छा लगा, बधाई

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  2. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत

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  3. oh.... lazabab. jism se dil nikal kar le gai.

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