Thursday, December 23, 2010

अब इसे बन्द करो........

किसका मन्दिर,किसकी मस्ज़िद,अब इसे बन्द करो।
बहुत हुई ये सियासत्, अब इसे बन्द करो ।।

सारी दुनियाँ जो सम्भाले, उसे सम्भालोगे ?
छोड़ो ये फ़र्ज़ी हिफ़ाज़त्,अब इसे बन्द करो ।।

सारी धरती है उसीकी, कहाँ नहीं है वो ?
तेरी-मेरी की वक़ालत्,अब इसे बन्द करो।।

नशाए-मज़हब में, इन्सानियत् को मत् भूलो !
बस् अब बदलो अपनी नीयत्,अब इसे बन्द करो।।

कुछ तो ऐसा करो, हर रूह को राहत् पहुँचे।
जेहादो-जंग की फ़ितरत्,अब इसे बन्द करो।।

जियो सुकून से, सबको सुकूँ से जीने दो ।
लग रही क़ौम पे तोहमत्,अब इसे बन्द करो।।

यहाँ के ना हुए, तो ख़ाक़ वहाँ जाओगे ?
कहाँ"गोपाल"पे रहमत्,अब इसे बन्द करो।।

Sunday, December 5, 2010

ग़ुजिस्ता दौर......

गुजिस्ता दौर गया, देके ये पैग़ाम हमें।
कि शराफत् ही अपनी कर गई नाकाम हमें।।

तमाम ज़िन्दग़ी, सफ़र में खप गई यूँ ही।
मग़र मिला ना कोई मन्ज़िलो-मुक़ाम् हमें।।

मेरे सिवाय,बदल गया ये ज़माना,फिर भी।
बदल गये जो,बदलने का दें इल्ज़ाम् हमें।।

जिनको रुसवा नहीं होने दिया हमने वो ही।
जाने क्यों? करते फिरें,ख़्वामोख़्वा बदनाम हमें।।

अपनी बेअक़्ली पे, हम आज़ बहुत हैराँ हैं।
जिसे पहचान दी,उसने किया बेनाम हमें।।

जिसे आँखों में बसाया,सजाया सीने में।
चला गया वही, करके लहूलुहान हमें।।

अजब दस्तूर है..गोपाल..इस ज़माने का।
सभी ग़रज़ पे ही,करते फिरें सलाम हमें।।

Wednesday, December 1, 2010

हमसा "आवारा" ना मिला.....

मांगने निकले,सहारा ना मिला।
हमें समझे,वो हमारा ना मिला।।

जिसे महसूस किया,दिल के क़रीब।
ऐसा बिछड़ा,कि दुबारा ना मिला ।।

हम भी तूफ़ान से बच जाते,मग़र।
कोई मौसम का ईशारा,ना मिला।।

सारी दुनियाँ में, ढूंढ कर देखा ।
..गोपाल..हमसा"आवारा"ना मिला।।

Saturday, November 27, 2010

मेरी ज़िन्दग़ी के पीछे......

है कारवाँ ग़मों का,मेरी ज़िन्दग़ी के पीछे।
छुपे दर्द हैं हज़ारों,मेरी इक हँसी के पीछे।।

अश्के-लहू ढले हैं,बरसों मेरी नज़र से।
तरसा है मुद्दतों दिल,इक पल ख़ुशी के पीछे।।

हम दर्द के मारों को,तेरा प्यार ही था मरहम्।
कहीं दम् निकल न जाए,तेरी बेरुख़ी के पीछे।।

इतने बड़े जहाँ में, हम ही कमनसीब ठहरे।
हम तेरे पीछे-पीछे,तू और किसी के पीछे ।।

जो ख़ता हुई हो हमसे,मेरी जान माफ़ कर दो।
दुनियाँ भुलादी हमने, तेरी गली के पीछे ।।

तू है मरी इबादत्, तू मेरी आरज़ू है ।
लाखों सितम् सहे हैं,तेरी दोस्ती के पीछे।।

ये क्या सफ़र है? जिसकी,मन्ज़िल भी ख़ुद सफ़र है।
बनके हमसफ़र है..गोपाल..,सफ़र ज़िन्दग़ी के पीछे।।

Friday, November 19, 2010

क्या कीजिए.....

जहाँ अपने ही इतने ख़तरनाक़ हों,वहाँ गैरों पे इल्ज़ाम क्या दीजिए।
ख़ून ही अपना जब बन गया हो ज़हर,तो दवाओं से उम्मीद क्या कीजिए।।

जब नशेमन हमारा जलाया गया,हाथ सेंका था सबने बड़े शौक़ से।
क्या बताएँ कि हम ख़ाक़ हो ना सके,बच गए ज़िन्दग़ी थी तो क्या कीजिए।।

जो विधाता की मर्ज़ी थी,बस् वो हुआ,उनकी रहमत् के आगे है..गोपाल..क्या।
हमने झेले बहुत ज़िन्दग़ी के सितम,और भी झेल लेंगे दुआ कीजिए ।।

Saturday, September 18, 2010

कितने नादाँ हो.....

कितने भोले हो,कितने नादाँ हो।
तुम नहीं जानते कि तुम क्या हो।।

तुम्हें पता नहीं ख़ुद की क़ीमत।
किसी के दिल हो,ज़िग़र हो,जाँ हो।।

क़द्र हीरे की, जौहरी जाने ।
ये ज़रूरी नहीं,सबको पता हो।।

ये ज़माना, अजीब जालिम है।
न दे, जिसकी जिसे तमन्ना हो।।

यूँ ही मिलजाए किसी को,जिसने।
भले उसकी क़दर न जाना हो ।।

बहाए कोई यूँ ही , गंगाजल ।
और कोई रूह-रूह प्यासा हो ।।

जहाँ के वास्ते, तुम "आम" होगे।
..गोपाल..के लिए,नूरे-ख़ुदा हो।।

Sunday, September 5, 2010

ज़रा मिलते रहिए.....

हँसे भी नहीं थे कि रोना पड़ा। कि अश्कों से दामन भिगोना पड़ा।
ख़ुशी की किरन भी न देखी अभी,कि ग़म के अन्धेरों में खोना पड़ा।।
मुरौव्वत् तो तूफ़ान ने कम न की,मग़र उसको मजबूर होना पड़ा।
नहीं चाहकर भी हरेक हाल में, उसे मेरी क़िश्ती डुबोना पड़ा ।।
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हमें बिछड़े हुई मुद्दत् , ज़रा मिलते रहिए।
दिल को मिलती रहे राहत्,ज़रा मिलते रहिए।।

वो आप क्या गए! कि दिन गए बहारों के।
मस्तियों-शोख़ियों भरे हसींन नज़ारों की ।
तन्हा-तन्हा है मुहब्बत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

कितने अरमानों से बस्ती बसाई थी दिल की।
मेरे सफ़र में आरज़ू नहीं थी, मन्ज़िल की ।
लहूलुहान है हसरत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

ज़िन्दग़ी में अब तो पतझड़ का ही बसेरा है।
जिधर भी देखिए, अन्धेरा ही अन्धेरा है ।
बड़ी ग़मगीन है तबियत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

ग़र मुनासिब न लगे, मिलना सरे-महफ़िल में।
हमें मिल लीजै इशारों मे, नज़र मे, दिल में।
..गोपाल..करके कुछ फ़ितरत्,ज़रा मिलते रहिए।। दिल को....

Wednesday, September 1, 2010

बेबात की बात..........

जितनी चाहे, लिखो अर्जी।
होगा वही जो वक़्त की मर्ज़ी।।
जितने चाहे देखलो सपने। इतना तो है बस् में अपने।।
ये कर लेना,वो कर लेना। सोच-सोच कर खुश हो लेना।।
फ़र्ज़ी बारिस,फ़र्ज़ी छाता। सपनों में जीवन कट जाता।।
कोशिश भी करता है इन्साँ। पर क्या सबको मिलता मौका?।
फिर भी अजब निराली दुनियाँ,देखा करती सपने तब भी।। जितनी....

भरम पाल कर जीते जाना। फ़र्ज़ की चाह में,फ़र्ज़ निभाना।।
सपनों से दिल को बहलाना। इक़ टूटा, दूसरा सजाना।।
ख़ुद से ख़ुद ही बड़ाई ख़ुद की। पीठ ठोकना ख़ुद ही ख़ुद की।।
सच्चाई कुछ भी हो चाहे। पर वो माने,जो मन चाहे ।।
हाय! यही इन्साँ की फ़ितरत्,सच् को ही ठहराता फ़र्ज़ी।। जितनी....

कर्म करो निष्काम हमेशा। कभी करो ना फ़ल की चिन्ता।।
कभी ना हारे,कभी ना जीते। वक़्त कभी भी व्यर्थ न बीते।।
देखे,परखे,समझे,जाने। आँख मूँदकर कहा न माने।।
समय,व्यक्ति और स्थान देखले। कहीं भी कुछ करने से पहले।।
फिरभी सपनों में जीना है,तो..गोपाल..तुम्हारी मर्ज़ी ।। जितनी....

Thursday, August 26, 2010

बेवजह का शोर है.....

हाक़िमों की महफ़िलों में, बेवजह का शोर है ।
कौन? उसकी सुनने वाला,जो यहाँ कमज़ोर है।।

ऱुतबे की दहलीज पर,घुटनों के बल कानून है।
जितना जो तोड़े इसे,वो उतना अफ़लातून है।।
उतना क़ामयाब है,जो जितना सीनाज़ोर है।। कौन....

बिन सबूतों के, बेचारा सच् सिसकता रह गया।
झूठ ने ओढ़ा लबादा,और ख़ुद सच् बन गया।।
अब सही और ग़लत्,इनके मायने कुछ और है।। कौन....

धोखा खाने वाले कम हैं,देने वाले हैं अधिक।
आज हर क़ीमत पे भारी,क़ामयाबी है अधिक।।
राह से मतलब किसे? ..गोपाल..अन्धी दौड़ है।। कौन....

Wednesday, August 18, 2010

य़हाँ तक आते-आते.....

चला था कारवाँ लेके, सफ़र पे।
अकेला रहगया मैं,यहाँ तक आते-आते।।

सफ़र जब ग़र्दिशो-तूफ़ान में था।
तल्ख़ सहरा में,बियाबान में था।।
नाख़ुदा तब मुझे सब मानते थे।
ख़ुद से ज़्यादा मुझे पहचानते थे।।
बड़े अदब से सब एहसाँ उठाते ।। अकेला रहगया मैं....

वक़्त का वो पुराना दौर बदला।
रफ़्ता-रफ़्ता सफ़र का ठौर बदला।।
अरे ये क्या! कि सब छितरा रहे हैं।
क्या मंज़िल मिलगई? सब जा रहे हैं।।
ना पूछा-ना कहा कुछ जाते-जाते ।। अकेला रहगया मैं....

ये तो मासूम थे,चालाक़ निकले।
दिल को क्या खूब!करके चाक् निकले।।
आज़ मैं क्या करूँ? कहाँ जाऊँ ?
उम्र का वो हिस्सा कहाँ पाऊँ ?।
अबतो मंज़िल भी अपनी भूल आया,चलते-चलाते।।अकेला रहगया मैं...

अब अपने साथ, बस्! तन्हाइयाँ हैं।
कि ग़ुज़रे वक़्त की परछाइयाँ हैं ।।
दिल में दम तोड़ते, कुछेक सपने।
और घायल से कुछ जज़्बात् अपने।।
..गोपाल..अब थक चुका लुटते-लुटाते।।अकेला रहगया मैं...

Sunday, August 1, 2010

हर मोड़ इम्तिहान लगी......

ज़िन्दग़ी! वैसे तो, तू देख के आसान लगी।
मग़र जीने में, तू हर मोड़ इम्तिहान लगी ।।

कभी उछली,कभी फिसली,कभी ठहर सी गई।
कभी इक़ लम्हा,तू इक़ बरस के समान लगी।।

लगी फूलों का ग़ुलदस्ता,ख़ुशी हो मन में जो।
दिल में हो दर्द तो,तू मौत का सामान लगी।।

हुआ करती थी,कभी रौनके-महफ़िल हमसे।
आज हमसे वही महफ़िल बेरूख़-बेजान लगी।।

कभी पलकों पे बिठाया, चली पीछे मेरे ।
आज क़तरा चली दुनियाँ,बड़ी अन्जान लगी।।

यूँ तो,हर सख़्श का है तज़ुर्बा, अपना-अपना।
..गोपाल..को तो हर क़दम,जंगे-मैदान लगी।।

वो लोग जो पहली बार.....

कभी दिल से नहीं जाते हैं,भले ही मिलके बिछड़ जाते हैं।
वो लोग जो पहली बार नज़र से,दिल में उतर जाते हैं।।

हों दूर भले आँखों से,पर दिल से दूर न होते।
आते उनके ही सपने,हर घड़ी जागते-सोते ।।
वो ख्वाबों-ख्यालों के नश्तर,कर चाक् ज़िग़र जाते हैं।। वो लोग जो।।

जब कभी जेहन में,उनका चेहरा,उभर आता है।
बेचैनी बढ़ जाती, दिल पागल हो जाता है ।।
दिल से होकर मजबूर दिवाने,क्या-क्या कर जाते हैं।। वो लोग जो।।

उनके पहलू में, जितना भी वक़्त ग़ुज़र जाता है।
वो याद सुनहरी बनकर,सीने में उतर जाता है ।।
..गोपाल..वो मंज़र, गए दिनों के,सारी उमर जाते हैं।। वो लोग जो।।

Friday, July 23, 2010

..रब से कम, इन्सान से ज्यादा डरो....

किसका रोना रोने जाओ, किसकी बात करो।
इस दुनियाँ में,ऱब से कम,इन्सान से ज्यादा डरो।।

रब तो, जैसी करनी तेरी,वैसा फल देगा।
पर इन्साँ चाहेगा तो,बिना कर्म के फल देगा।
और किसी के कर्मों का हर्जाना आप भरो ।। इस दुनियाँ में।।

अच्छाई का बदला,बेशक्!रब अच्छा देगा।
पर इन्साँ की मर्ज़ी पर है, जो चाहे देगा।
सबकुछ उसके मूड पे है,तुम जीओ,चाहे मरो।। इस दुनियाँ में।।

क़दम-क़दम पे जाल बिछा है,किधर से निकलोगे?
मौका तो दे दो, फ़िर देखो, ख़ुद पर रोओगे ।
आज तो रब ख़ुद हैराँ है,..गोपाल..क्या आह भरो।। इस दुनियाँ में।।

Thursday, July 15, 2010

मिल जाया करेंगे यूँ ही,जीवन के सफ़र में....

मिल जाया करेंगे यूँ ही, जीवन के सफ़र में ।
किस रस्ते पे,किस मोड़ पे,ये कह नहीं सकता।।

वैसे भी, हरेक बात का वादा, नहीं अच्छा ।
कल कौन कहाँ हो,ये कोई कह नहीं सकता।।

दिल में, ज़रा सी जगह, मेरे वास्ते रखिए ।
मैं वक़्त नहीं ग़ुज़रा,जो फिर आ नहीं सकता।।

आने की ख़ुशी कैसी,क्या है मिलन का एहसास।
अब!उसको क्या पता,जो कभी जा नहीं सकता।।

Thursday, July 8, 2010

जाने क्यूँ बात चली......

की है तन्हाई से बातें पहरों,सुनी है शोर ख़ामोशी की तमाम।
छटपटाती हुई सुबहें कितनी,और सिसकती हुई देखी है शाम।
ग़म से बेज़ार दोपहर देखी, रात रोती हुई मायूस, नाकाम ।
बन्द कमरे में बेबसी के पल,कटती बेमकसद् ज़िन्दग़ी तमाम।।
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फिर तेरा जिक्र छिड़ा,फिर तेरी बात चली।
दिल में एक हूक उठी,आह बनकर निकली।।

ख्याल बनके उठे, तुम छा गए दिल पर ।
धूल यादों की उड़ी, फिर तमन्ना मचली ।।

पुराने ज़ख्म खुले, बहा फिर खूँ दिल का ।
ग़म के बादल घुमड़े, झड़ी आँसू की चली।।

बहल चला था दिल,मचल उठा..गोपाल..।
अब सम्भालूँ कैसे , जाने क्यूँ बात चली ।।

Wednesday, June 30, 2010

हम भी आदमजात हैं....

इतना क्या काफी नहीं कि हम भी आदमजात हैं।
पास अपने भी है दिल,हैं धड़कनें,जज़्बात् हैं ।।

ज़िन्दग़ी का हक़्,हमें भी,कुछ तो मिलना चाहिए।
हमभी बन्दे हैं उसीके, जिसकी कायेनात् है ।।

हर सुबह को देखते हैं, हम बड़े उम्मीद से ।
शाम तक पाते हैं कि बस् एक से हालात् हैं।।

रखलो अपने पास तुम, सारे जहाँ की नेमतें।
पर हमारी रोटियाँ भी छीनलो,कोई बात है!?

वैसे तेरे साथ,अपनी हैसियत् ही क्या रही!
जेब में खोटी अठन्नी,बस् यही औकात् है।।

हैसियत् ऊँची हुई, इन्सान छोटे हो गये ।
क्या कहें..गोपाल..किसको,हर ग़ली की बात है।।

Sunday, June 27, 2010

इन्साफ़ इसका अन्धा.....

इन्साफ़ इसका अन्धा,क़ानून बेसहारा।
सारे जहाँ से अच्छा,हिन्दोस्ताँ हमारा।।

क़ानून के हैं बाजू ,ये ख़ाक़ी वर्दी वाले।
रिश्वत् बग़ैर किसकी है मज़ाल कुछ कराले।।
इन्सान क्या है,इनसे भगवान भी है हारा।। सारे जहाँ....

य़े काले कोट वाले,इन्साफ़ की हैं आँखें।
सच्चाई इनको रोती,इन्साफ़ बेच खाते।।
इनसे लहू-लुहाँ है, क़ानून की हर धारा।। सारे जहाँ....

जिनकी क़लम से छूटे,तलवार को पसीना।
हर रोज चीरते हैं, इन्साफ़ का ये सीना ।।
ये पत्रकार,फिरभी इन्साफ़ इनका नारा ।। सारे जहाँ....

हैं देश को चलाते, नेताजी खादी वाले ।
करते हैं नित् घोटाले,बोफोर्स और हवाले।।
स्कूटर पे लाते,नौ सौ करोड़ का ये चारा।। सारे जहाँ....

इतने ही नहीं, जाने हैं और कितने सारे।
हैं नोच रहे,"सोने की चिंड़िया"के पंख प्यारे।।
..गोपाल..दिलादो याद इन्हें,इतिहास तो हमारा।। सारे जहाँ....
(ये मेरा व्यक्तिगत् विचार है,इसके अपवाद् भी हैं)

Thursday, June 24, 2010

बुलन्द हक़ की तुम आवाज़ करोगे कैसे?...

बुलन्द,हक़ की तुम आवाज़ करोगे कैसे ?
ज़ुल्म का, बढ़ के एतराज़ करोगे कैसे ?।

हरेक अन्जाम भुगतने का न माद्दा हो अगर।
ये बताओ कि फिर आग़ाज़ करोगे कैसे ?।

दिल में,तूफ़ान से टकराने का जज़्बा ही नहीं।
खुले आकाश में, परवाज़ करोगे कैसे ?।

यूँ समन्दर की जो गहराईयों से डरते रहे।
फ़िर कहो! साहिलों पे राज करोगे कैसे?।

..गोपाल..यूँ रही आदत,जो डर के जीने की।
खुद को साबित, एक जाँबाज़ करोगे कैसे ?।

Monday, June 21, 2010

सोचा है, किसी और से अपना दर्द बाँटेंगे....

मौत बन-बन के मुझे, ज़िन्दग़ी सताती है।
मौत आती नहीं,बस्! याद उनकी आती है।।
चैन आता है कहाँ ? नींद कहाँ आती है ?
अब तो बस्! साँस आती है,साँस जाती है।।
**********************************
दिल में जज़्ब रखेंगे,ख़ुद झेलेंगे,काटेंगे।
सोचा है,किसी और से अपना दर्द न बाँटेंगे।।

किसी के हँसते-खिलते चेहरे पर,क्यों ग़म मल दें?
क्यों किसी और को अपने कर्म और क़िस्मत् का फल दें?
बो रखी है फ़सल जो ग़म की, दर्द ही काटेंगे।। सोचा है....

जिसका जितना भी हक़ हमपे,अदा तो करना है।
इसके पीछे जो भी ग़ुज़रे, हँस के सहना है ।
नहीं करेंगे ग़िला कोई,ना मोहलत् मांगेंगे।। सोचा है....

दिल में ज़्यादा दर्द उठा तो थोड़ा रो लेंगे।
दाग़ हसरतों के सारे,अश्क़ों से धो लेंगे ।
वक़्त हो कितना भी भारी,हम तन्हाँ काटेंगे।। सोचा है....

सतरंगे सपनों के, सभी घरौंदे टूट गए ।
समय की पग़डन्डी में,बरसों पीछे छूट गए।
अब..गोपाल..के बस में क्या,जो वापस लौटेंगे।।सोचा है....

Thursday, June 10, 2010

तेरी महफ़िल में लेकिन हम नहीं होंगे....

भले तुम आसमाँ हो जाओगे,और हम ज़मीँ होंगे।
सभी होंगे तेरी महफ़िल में लेकिन,हम नहीं होंगे।।

बढ़ालो जितना भी तुम,दब-दबा अपना ज़माने में।
मगर उस दायरे में आने वाले, हम नहीं होंगे ।।

होंगे सर झुकने वाले,यूँ बहुत से,तेरे सज़दे में।
मगर तेरे लिए नपते थे जो गर्दन,नहीं होंगे ।।

ये माना मेरे बिन भी,तेरे जलवे कम नहीं होंगे।
मग़र तेरी अदा में,अब वो पेंचो-खम् नहीं होंगे।।

चलो अच्छा हुआ,हमको भी जीना आगया,तुम बिन।
न कोई ज़ख्म ऐसा,जिसके कि मरहम् नहीं होंगे ।।

यहाँ कुछ देर में, सबको ज़माना भूल जाता है ।
कल को तुम भी नहीं होगे..गोपाल..हम नहीं होंगे।।

Friday, June 4, 2010

हमें बनना है.....

हमें बनना है, बिगड़ने की बात क्यों सोचें ?
अभी सवँरना है,उजड़ने की बात क्यों सोचें ?|
आओ इस ग़ुलशन को भर दें,अमन के फूलों से।
मिल के रहना है,बिखरने की बात क्यों सोचें ?।1||

किसी भाषण की ज़रूरत् नहीं होती इनको।
कर्मयोगी के तो बस् कर्म बोला करते हैं।।
समय के सीने पर,बनकर अमिट हस्ताक्षर।
ये अपने बाद भी,दुनियाँ में रहा करते हैं ।।2।।

Friday, May 28, 2010

आएंगे दिन वो फिर से....

दिल झूठा किया करता एतबार उम्र भर।
आएंगे दिन वो फिर से एक बार उम्र भर।

इन्साँ जिसे खो देता, हमेशा के वास्ते।
उनको बुला लेता है,ख्यालों के रास्ते ।
करता है फिर उनसे ग़िले हज़ार उम्र भर।। आएंगे दिन...

मालूम तो रहता ही है,वो अब न मिलेंगे।
लगता है मग़र, फूल फिर इक़ बार खिलेंगे।
देता इसी भरम में वो ग़ुज़ार उम्र भर ।। आएंगे दिन...

ये है पता, वो अब यहाँ कहीं भी नहीं है।
लगता है पर यहीं है वो, यहीं पे कहीं है।
दिल ख़्वामोख़्वा करता है ये इक़रार उम्र भर।। आएंगे दिन...

मिल जाते हैं कुछ लोग यूँ जीवन के सफ़र में।
कुछ दूर चलके साथ, छोड़ जाते डग़र में ।
..गोपाल..किया करता इन्तज़ार उम्र भर।। आएंगे दिन...

डोर साँसों की ये ज़िन्दग़ी है....

डोर साँसों की ये ज़िन्दग़ी है, कौन जाने कि कब टूट जाए।
जाने किस मोड़ पर किसका दामन,किसके हाथों से कब छूट जाए।।

जितनी मिल जाएँ खुशियाँ मनालो,
ग़म भी आए तो हँस के उठालो।
ज़िन्दग़ी खूबसूरत बनालो, ये सफ़र बाख़ुशी बीत जाए।।

वक़्त के साथ चलते ही जाओ।
वक़्त को बेवजह ना गवाँओ ।
है ये मुमक़िन नहीं ज़िन्दग़ी में,वक़्त ग़ुज़रा हुआ लौट आए।।

चाहे जितना घना हो अन्धेरा।
रोक सकता नहीं ये सवेरा ।
तोड़कर उस अन्धेरे की सतहें,रोशनी की किरन फूट आए।।

ज़िन्दग़ी बस् उम्मीदों के बल पर।
काट लेता है इन्साँ, तरस कर ।
नाउम्मीदी का लम्हा भी..गोपाल..मौत से पहले ही मौत लाए।।

Saturday, May 22, 2010

प्रिय ! तुम्हें मेरी याद आएगी....

जब-जब दुनियाँ सितम करेगी,दिल पर चोट लगेगी।
दिल तेरा रोएगा, प्रिय! तुम्हे मेरी याद आएगी ।।

दिल में तेरे जब-जब,दर्दो-ग़म की घटा घिरेगी।
मायूसी,नाउम्मीदी की,जब-जब धुन्ध उठेगी ।
जब-जब राह तेरे जीवन की,मुश्क़िल हो जाएगी।। दिल तेरा...

वक़्त की कुछ बेदर्द ठोकरें खा के, बिख़र जाओगे।
जब ख़ुदग़र्ज़ ज़माने में, ख़ुद को तन्हा पाओगे ।
नज़र बचाके दुनियाँ तुमसे, आगे बढ़ जाएगी ।। दिल तेरा...

हालातों से लड़ते-लड़ते, जब तुम थक़ जाओगे।
मज़बूरी की धूप में जब..गोपाल..झुलस जाओगे।
कमी मेरी उस वक़्त तुम्हे,बेचैन बना जाएगी ।। दिल तेरा...

Wednesday, May 12, 2010

वक़्त का झोंका......

वक़्त का झोंका, है जो कुछ,सब उड़ा ले जाएगा।
आखिरस् इन्सान इस दुनियाँ से क्या ले जाएगा ?।

आज हम जश्ने-जवानी के नशे में चूर हैं ।
कल बढ़ापे का दखल,सारा मज़ा ले जाएगा।।

दौलतो-शोहरत् की अन्धी दौड़ में,शामिल हैं सब।
ये ज़ुनूँ अब क्या पता,किसको कहाँ ले जाएगा ।।

दिल में वो उतरा नज़र से, दिल चुराने के लिए।
दिल में जब दिल ही नहीं, तो क्या भला ले जाएगा ?।

धर्मो-ईमाँ,आबरू,किरदार, गैरतो-जज़्बात्।
बिक रहे सब,दाम वाज़िब देगा जो,ले जाएगा।।

आज का इन्साँ, बड़ा ही प्रेक्टिकल,प्रोफेशनल।
बात वो कुछ की करेगा,बहुत कुछ ले जाएगा ।।

सबको ख़ुशफहमी में रखने की, है बस् आदत् उसे।
खत् न लिक्खेगा किसी को,बस् पता ले जाएगा ।। (inspired)

क्या पड़ी..गोपाल..को,रक्खा करे सबका हिसाब।
कौन क्या दे जाएगा,और कौन क्या ले जाएगा ।।

Saturday, May 8, 2010

मर गया इन्सान....

मर गया इन्सान,ज़िन्दा रहगयीं परछाईयाँ।
झेलता कबतक अकेला,दर्दो-ग़म,रुसवाईयाँ।।

कोशिशें यूँ तो बहुत की,क़ामयाबी के लिये।
पर ज़माने ने उसे दीं,हर क़दम दुश्वारियाँ ।।

मिल सकी माफ़ी कभी ना,छोटी सी भी भूल की।
पाट ना पाया वफ़ा से,रंजिशों की खाईयाँ ।।

दौलतो-शोहरत् की,अन्धी दौड़ में,फिसलन बहुत।
रहगया वो नापता,जज़्बात् की गहराईयाँ ।।

ज़िल्लतों की मार खाकर,पहले तो ग़ैरत् मरी।
रफ्ता-रफ्ता,दम उसूलों का घुटा,ले हिचकियाँ।।

आबरू ईमान की,लुट-लुट के जब बेदम हुई।
उठ गईं फिर हसरतो-उम्मीद की भी अर्थियाँ।।

ज़िन्दग़ी की क़श्मक़श में,पिस रहा..गोपाल..था।
देगईं आराम उसको, मौत की पुरवाईयाँ ।।

Friday, May 7, 2010

इन्सान खिलौना है....

है वक़्त की जो मर्ज़ी,हर हाल में होना है।
हालात् के हाथों का, इन्सान खिलौना है।।

तू लाख बचा दामन,छीँटे तो पड़ेंगे ही।
तक़दीर की मर्ज़ी है,बेआबरू होना है ।।

तू सोचले चाहे कुछ,तू चाह ले चाहे कुछ।
ये वक़्त के ऊपर है,तेरे साथ जो होना है।।

मझधार से कैसा डर,क्या ख़ौफ़ भवँर का जब।
तूफाँ को तेरी क़िश्ती,साहिल पे डुबोना है।।

क्या फ़ागुन, क्या सावन,हर रुत् को सताना है।
फागुन को जलाना है,सावन को भिगोना है ।।

वैसे तो फ़ितरत् ये, इन्साँ की पुरानी है ।
जितना भी मिल जाये,फिर भी उसे रोना है।।

मोहलत् तो बहुत दी थी,यूँ वक़्त ने हमको भी।
..गोपाल..की पर आदत्,पा-पा कर खोना है ।।

Friday, April 30, 2010

कभी मिलो तो सही....

हाले-दिल क्या है,बताएँ, कभी मिलो तो सही।
दिल का हर ज़ख़्म दिखाएँ,कभी मिलो तो सही।।

कैसे जीते हैं,ज़ुदाई में, आह भर-भर कर।
तुम्हें एहसास दिलाएँ,कभी मिलो तो सही।।

बड़ा आसान था यूँ तो, दिल का लेना-देना।
कब तलक़ तन्हा निभाएँ,कभी मिलो तो सही।।

वक़्त रुकता नहीं यहाँ, कभी किसी के लिये।
ये उम्र यूँ ही न जाए, कभी मिलो तो सही।।

रह गये आज हम,दरिया के किनारे बनकर।
आओ शैलाब उठाएँ,कभी मिलो तो सही ।।

आखिर इस रिश्ते को,कोई तो शक़्ल दें..गोपाल..।
इसे अन्ज़ाम पे लाएँ, कभी मिलो तो सही ।।

Sunday, April 25, 2010

बड़ी हसरत् थी.....

बड़ी हसरत थी,उनसे मिलने की,मुद़्दत् से हमें।
उनके दर तक पहुँचने में मग़र, ज़माने लगे ।।

तमाम उम्र, इन्तज़ार - ओ - आरज़ू में ढली ।
रात में दिन,और दिन में तारे नज़र आने लगे।।

सुना है,अब वो बदलते हैं, रोज दोस्त नये।
पुराने दोस्तों से, आज हैं कतराने लगे ।।

अजीब वाक़या..गोपाल.. मेरे साथ हुआ।
गया मैं पास, तो वो दूर-दूर जाने लगे ।।

Saturday, April 24, 2010

वक़्त के हाथों.....

खुद को समझा करता था मैं,बहुत बड़ा चालाक।
वक़्त के हाथों से,मैं बनकर रह गया एक मज़ाक।।

अपनी समझदारी पर था,मुझको बड़ा विश्वास।
सुलझाया करता था,सबके मसले और फ़साद।
अब ख़ुद में ऐसा उलझा,कि छान रहा हूँ ख़ाक़।। वक़्त के हाथों..

आत्मविश्वास और स्वाभिमान हैं,घायल-लहूलुहान।
साहस और मनोबल थक गए,दे-दे कर इम्तिहान।
इच्छा और उत्साह,निराशा के बन गए ख़ुराक़।। वक़्त के हाथों..

ईमानदारी, सच्चाई मेरी, बेचैन तड़पती ।
अन्तरात्मा में,आदर्शों की अब चिता है जलती।
डूब गया..गोपाल..किनारे,बनता था तैराक़।। वक़्त के हाथों..

दुनियाँ बदल गई......

हालात् न बदले मेरे,दुनियाँ बदल गई।
हाथों से ये तमाम ज़िन्दग़ी निकल गई।।

मैं जहाँ भी गया, परेशानी ही चली साथ।
ख़्वाहिश रही ख़्वाहिश ही,दिल में रह गए अरमान।
तक़दीर की दलदल,हरेक हसरत् निगल गई।। हाथों से ये...

इस वक़्त की पेचीदग़ी,समझा न था अभी।
फ़ितरत् के दिलफ़रेब रंग,देखा न था अभी।
सम्भला भी नहीं था,कि हर ख़ुशी फिसल गई।। हाथों से ये...

जिससे मिला,अपनी परेशानी मुझे दे दी।
एहसान में अपनी निगेबानी मुझे दे दी ।
दुनियाँ दुहाई फ़र्ज़ की दे-दे के छल गई।। हाथों से ये...

जाना नहीं कि है क्या,जवानी की उछल-कूद।
बचपन से बुढ़ापे में,सीधे कर गया मैं कूच ।
यूँ बोझ ज़िम्मेदारियों की, सर पे ढल गई।। हाथों से ये...

जी-जी के मरा हूँ,और मर-मर के जिया हूँ।
तरसा हूँ, फिरभी सब्र का पैमाना पिया हूँ ।
..गोपाल..दिल ज़लाया,ज़िन्दग़ी ही जल गई।। हाथों से ये...

Friday, April 16, 2010

ये शराफत् है तबाही का शबब....

दिल की नादानी पे,ख़ुद को न यूँ कोसा करिए।
सूखते ज़ख़्म के छाले , न कुरेदा करिए ।।

दिल तो हर वक्त, बहकने का बहाना खोजे।
ये बहकता रहेगा, लाख समेटा करिए ।।

कहाँ जाएंगे आप,इस शहर में कौन अपना है?
कोई खिड़की न खुलेगी, खटखटाया करिए ।।

ज़िग़र का सारा लहू भी पिला दिया जिसको।
वो ही अपना न हुआ,किसपे भरोसा करिए ?।

खुशी तो बेवफ़ा है, बेवफ़ा से क्या उम्मीद ?
साथ चलते हैं ग़म इनका ही भरोसा करिए।।

दर्दे-दिल अश्क़ बनके ढलते हैं, ढलने दीजे।
इन आसुओँ को,यूँ पलकों पे न रोका करिए।।

कई..गोपाल.. हैं तबाह,शराफ़त् में आज।
ये शराफ़त् है तबाही का शबब,क्या करिए ?।

Thursday, April 8, 2010

हर राह भटका गई....

मेरी जिन्दगी के हरेक रुख़ पे क़िस्मत्,अन्धेरों के पर्दे यूँ लटका गई।
ग़ुज़र कर तो देखा,कई रास्तों पर,मग़र मुझको हर राह भटका गई ।।

खड़े होके देखा किनारे से जब-जब,नज़र आया था पास साहिल बहुत।
मग़र जब चले इत्मिनान-ओ-यकीं से,क़िनारे ही क़िश्ती भवँर खा गई।।

कई मोड़ ऐसे मिले राह में, जो कराते रहे मन्ज़िलों के ग़ुमां ।
वहीं आगये फिर,जहाँ से चले थे,ये किस राह पर ज़िन्दग़ी ला गई।।

सफ़र पे चले तो सुनहरी सुबह थी, मग़र राह में धुन्ध बढ़ती गई ।
अन्धेरा तो..गोपाल..कम ना हुआ,ज़िन्दग़ी की ही शाम-ए-सफ़र आ गई।।

Thursday, April 1, 2010

जीवन की अभिलाषा....

जीवन के संग चलते सुख-दु:ख,आशा और निराशा।
फिरभी ऐसा कौन, जिसे ना जीवन की अभिलाषा ।।

सुख में हँसा उछलकर,दु:ख में फूट-फूट कर रोया।
जो कुछ भी पाया, सब भूला, याद रखे जो खोया।
जितना भी मिल जाये,उससे अधिक की रहे पिपासा।। फिरभी ऐसा कौन..

कितना भी संघर्ष भरा हो, जीवन का पथ फिर भी।
चलता ही जाता है मानव,उठ-उठ,गिर-गिर कर भी।
जबतक चलती स्वाँस वक्ष में, तबतक चले तमाशा।। फिरभी ऐसा कौन..

दु:ख की तपती दोपहरी में,इक़ पल सुख की छाया।
सूखी रेत में ओँस की बूँदें, देख-देख मुस्काया ।
मृगत्रृष्णा के पीछे भागे, सारा जीवन प्यासा ।। फिरभी ऐसा कौन..

जीने का उद्देश्य नहीं कुछ, फिरभी जिये जाता है।
घूँट-घूँट जीवन का विष,बस् यूँ ही पिये जाता है।
ना कोई रंग-उमंग-तरंग,ना रही कोई जिज्ञासा ।। फिरभी ऐसा कौन..

जीवन का अस्तित्व बचाने के हित,किये न क्या-क्या।
अच्छा ना कर पाया कुछभी, जो तो बुरा बन बैठा।
निकल पड़ा..गोपाल..विद्रुप हो,मन में लिये हताशा।। फिरभी ऐसा कौन..

Saturday, March 27, 2010

याद बरसों जो आते रहे....

टूट कर दिल ने चाहा जिन्हे,याद बरसों जो आते रहे।
ज़ख्म बन-बन के चुभते रहे,दर्द बनके सताते रहे ।।

हाय रे कमनसीबी मेरी,मिलके बिछड़े तो फिर ना मिले।
वक़्त ने ऐसे मारा कि हम,आज तक चोट खाते रहे ।।

हम खड़े आह भरते रहे, वो गली से ग़ुज़रते रहे।
इस तरफ़ दिल कसकता रहा,और वो मुस्कुराते रहे।।

अब ग़िला क्या करें उनसे हम,अबतो सबकुछ फ़ना होगया।
हैं हक़ीक़त किसी और के,जिनके सपने हम सजाते रहे।।

याद करना मुनासिब नहीं,भूल पाना भी मुमक़िन नहीं।
जितना..गोपाल..भूला किये,और भी याद आते रहे।।

Friday, March 19, 2010

जीवन का दस्तूर हुआ....

खुशियाँ कम,ग़म ज़्यादा सहना,जीवन का दस्तूर हुआ।
अपने हालातों के हाथों, मैं कुछ यूँ मजबूर हुआ ।।

हर ज़िम्मेदारी ढोई...., हमने तो ज़िम्मेदारी से ।
फ़र्ज़ की हद् तक,फ़र्ज़ निभाना,शायद यही कुसूर हुआ।।

ख़ुदग़र्ज़ी ने,ख़ुद्दारी को, घायल,लहूलुहान किया।
हसरत् उजड़ी,सपने बिखरे,दिल भी चकनाचूर हुआ।।

जीवन की आपा-धापी में,ख़ुद को वक़्त न दे पाया।
जीवन का एक लम्बा हिस्सा,यूँ ही गया,फ़िज़ूल हुआ।।

मेरी आँखों ने भी देखे थे कुछ ख़्वाब रुपहले से।
आँख खुली तो सपनों का सारा मंज़र क़ाफ़ूर हुआ।।

अब बस् इक मौक़ा,मैं वक़्त से माँग रहा..गोपाल..मग़र।
लगता है,कि अब मैं क़ाफ़िला-ए-वक़्त से ज़्यादा दूर हुआ।।

Wednesday, March 17, 2010

तुम ख़ुदा हुए....

जिस दिन से जान-ए-ज़ाँ हमसे,तुम ज़ुदा हुए।
हमदर्द हुए दर्द, कि ग़म मेहरबाँ हुए ।।

यूँ ही साथ चलते-चलते तुम,किस मोड़ मुड़ गये।
कितनी सदाएँ दीं मग़र,तुम जाने कहाँ हुए ।।

तेरे ही साथ, हमसे ख़ुशी भी बिछड़ गई।
फिर तेरे बाद,ख़ुशियों के मौसम कहाँ हुए।।

दिल में मेरे अरमानों की,ऐसी चिता जली।
जज़्बात् जल के ख़ाक़ हुए,सपने धुआँ हुए।।

ग़र्दिश में वक़्त की,हमारा ग़ुम हुआ वज़ूद।
पहचान तलक ना बची, यूँ बेनिशाँ हुए ।।

हम कबकी छोड़ बैठे थे,जीने की ज़ुस्तज़ू।
पर शायद, तेरे इन्तज़ार में यहाँ हुए ।।

हम मर गये तो मर गये,पर तुम नहीं मिले।
..गोपाल.. आदमी ना रहे,तुम ख़ुदा हुए ।।

तो किधर जाऊंगा....

तूने दिल से जो निकाला,तो किधर जाऊंगा।
तेरा बीमार हूँ,मैं वैसे ही मर जाऊंगा ।।

फेर ली आँख,नज़र से न गिरा,मैं ख़ुद ही।
बनके आँसू,तेरी पलकों से उतर जाऊंगा ।।

मेरी बर्बादियों से,गर् तू हो सके आबाद।
बारहाँ शौक़ से,ऐ दोस्त मैं मर जाऊंगा।।

इतना टूटा हूँ, तेरे ईश्क़ में, तेरे ग़म में।
मैं अपने ख्वाबों के मानिन्द बिखर जाऊंगा।।

लाख भूलोगे मग़र,ग़ुज़रा हुआ क़ल हूँ तेरा।
याद बन-बन के,ख्यालों में उभर जाऊंगा।।

अगर मिट भी गया,तो बन के हवा का झोंका।
तेरी गली से, हरेक शाम ग़ुज़र जाऊंगा।।

चला जाऊंगा मैं इस दुनियाँ से,फिर भी..गोपाल..।
तेरी राहों में,बिछा के मैं नज़र जाऊंगा ।।

Monday, March 15, 2010

तो तुम याद आए....

जब भी निकला फ़लक पे चाँद,तो तुम याद आए।
सज उठी तारों की बारात्,तो तुम य़ाद आए ।।

गुनगुनाती हुई हवा,दिल को सहला सी गई।
गुदगुदाने लगे एहसास,तो तुम याद आए ।।

रात की रानी के फूलों की महक़ से आई।
तेरे दामन की महक़ याद,तो तुम याद आए।।

बौर लगने लगे, जब आम के बगीचे में।
और कोयल नें की ग़ुहार,तो तुम याद आए।।

भीगी,लहराती,खुली ज़ुल्फों में कंघी डाले।
ये दोपहर में लिकला कौन,कि तुम याद आए।।

छत् पे साया कोई, फ़िर शाम के अन्धेरे में।
करा गया तेरा ग़ुमान्,तो तुम याद आए ।।

..गोपाल..जब भी तेरी याद को छेड़ा मैनें।
चल पड़ी यादों की बारात्,यूँ तुम याद आए।।

मैं कहीं भी रहूँ....

रंज में,ग़म में,अन्धेरों में,उज़ालों में रहूँ।
मैं कहीं भी रहूँ,तेरे ही ख़्यालों में रहूँ ।।

किसी मुक़ाम,किसी मोड़,किसी मन्ज़िल पे।
वक्त की ग़र्दिशों,हालात् के जालों में रहूँ ।।

मैं तेरे दिल में हूँ,नहीं हूँ,कोई बात नहीं।
तेरी नज़र में,तरे चाहने वालों में रहूँ ।।

तेरी यादों के सिवाय,कुछ भी मेरे पास नहीं।
तेरी यादें भी भुलादूँ,तो किस तरह मैं रहूँ।।

सफ़र ये उम्र का,अब यूँ कटे शायद..गोपाल..।
तेरी हसरत् लिये,मैं आख़िरी सफ़र में रहूँ।।

Monday, February 8, 2010

ऐसी बही बयार....

अबकी बार चुनाव में,ऐसी बही बयार।
नेताओं को मिल रहे,जूतों के उपहार।।

जनता को भी क्या कहें, बूझे ना जाने।
एक चला जिस राह पर, पीछे चल निकले।
जिसे भी देखो चढ़ रहा,जूतों का ही बुख़ार।। नेताओं को मिल रहे..

नेता भी तो ढीठ हैं, हिम्मत् ना हारें।
चाहे जनता जितने जूते,गिन-गिन के मारे।
एक बार जूते सही, पाँच बरस सरकार।। नेताओं को मिल रहे..

उछले-कूदे,सींग दे,और चलावे लात।
फिर पीछे थक़-हार कर,दूध की दे सौग़ात्।
जनता दुधारू गाय है,नेता हैं होशियार।। नेताओं को मिल रहे..

नेता जूताखोर हो,जनता रहे गवाँर।
फिर तो भइया हो गया,देश का बन्टाधार।
लोकतन्त्र के नाम पर,बस् जूतम्-पैज़ार।। नेताओं को मिल रहे..

हाथ अपने जब वोट का,इतना बड़ा हथियार।
अनपढ़,लम्पट,बेईमानों को चुनते क्यों हैं यार?
अपराधी हम भी हुए,चुनी ग़लत् सरकार।। नेताओं को मिल रहे..

फ़ैशन के नाम पर....

देखी बड़ी मनमानियाँ,फ़ैशन के नाम पर।
क्या-क्या हुईं कुर्बानियाँ,फ़ैशन के नाम पर।।

पहले थी कुलवधू,वो अब दिखती नगरवधू।
कन्याएँ बनी फिरती हैं , रक़्क़ाशा हूबहू।
साक़ी बनी हैं रानियाँ,फ़ैशन के नाम पर।। क्या-क्या हुई...

अब तो पिताजी "डैड"हैं,माताजी हैं "मम्मी"।
हैं एक से लिवास में,लड़का हो या लड़की ।
सबको चढ़ा फ़िल्मानियाँ,फ़ैशन के नाम पर।। क्या-क्या हुई...

शौहर की गर्लफ्रैन्ड, तो बीवी का ब्वायफ्रैन्ड।
बच्चों की रोज धुन बदल-बदल के बजती बैन्ड।
हैं आम ये कहानियाँ,फ़ैशन के नाम पर ।। क्या-क्या हुई...

कोई है होमो सेक्सुअल, तो कोई लेस्बियन।
शादी से पहले चल रहा है,लिव-इन-रिलेशन।
ये कैसी कारस्तानियाँ, फ़ैशन के नाम पर।। क्या-क्या हुई...

जहाँ धरती से बड़ी माँ,पिता आकाश से ऊँचा।
जिसे राम,कृष्ण,बुद्ध,विवेकानन्द ने सीँचा ।
वो भारत बना बर्तानियाँ,फ़ैशन के नाम पर।। क्या-क्या हुई...

हर मोड़ पर जलती है,संस्कारों की होली।
आदर्शों,मर्यादाओं और विचारों की होली।
..गोपाल..को हैरानियाँ,फ़ैशन के नाम पर।। क्या-क्या हुई...

Sunday, February 7, 2010

हसरत् है दिखा जाऊँ....

मैं अभी क़फ़स में हूँ,मेरा ग़र्दिश में है सितारा।
कि मैं आऊँगा फलक़ पे,एक रोज फिर दुबारा।।

हालात् की हवाएँ,चाहे लाख सर पटक लें।
तूफ़ान से डर जाए,वो दिल नहीं हमारा।।

मन्ज़िल को चलपड़े हैं,मन्ज़िल पे ही रूकेंगे।
परवाह नहीं, जितना भी दूर हो किनारा।।

न सज़ा कुबूल हमको,ग़ुमनाम ज़िन्दग़ी की।
हसरत् है दिखा जाऊँ,दुनियाँ को कुछ नज़ारा।।

Thursday, February 4, 2010

उनकी आहट ज़रा हो गई....

उनकी आहट ज़रा हो गई।
कितनी रंगीँ फ़िज़ा हो गई।।

हर तरफ ख़ुशनुमा सा लगे।
जैसे रुत् फिर जवाँ हो गई।।

हर कली गुन-गुना सी उठी।
मद़माती ह़वा हो गई।।

हस़रतों ने भी ली करवटें।
हऱ तमन्ना ज़वाँ हो गई।।

धड़कनें बेतहासा हुई ।
मौज़ दिल़ की ऱवाँ हो गई।।

हम़ भी यूँ बावले से हुए।
जैसे इक़ बुत् में ज़ाँ हो गई।।

पल़ में ये आलमे-ज़िन्दग़ी।
क्या से..गोपाल..क्या हो गई।।

Wednesday, February 3, 2010

इस गणतन्त्र पर....

ऐ शहीदों,तुम्हारे लहू की कसम़,तेरी कुर्बानियों को ना भूलेंगे हम़।
तुमको लाखों-करोड़ों नमऩ।।0।।
ज़ान दी तुमने ताकि रहे ये वतऩ,ज़र्रा-ज़र्रा सलाम़त रहे ये च़मऩ।
तुमको लाखों-करोड़ों नमऩ।।0।।

नीव की ईँट बनकर तुम्ही ने,थाम्ही बुनियाद़ आज़ादी की है।
है महल़ आज़ गणतन्त्र का ये,सीना ताने खड़ा तेरे दम़ पे।
तुमने हँसते ही हँसते जो ओढ़ा कफ़न,रो पड़ी ये धरा,रो पड़ा वो गगऩ।।
तुमको लाखों-करोड़ों नमऩ।।0।।

देश के वास्ते मरने वालों,देश को नाज़ तुम पर रहेगा।
तुमने बख्शा जो हमको तिरंगा,ये तेरा कर्ज़ हम पर रहेगा।
तेरी यादों की महफ़िल सजाएंगे हम़,गीत तेरी वफ़ाओं के गाएंगे हम़।।
तुमको लाखों-करोड़ों नमऩ।।0।।

आज़ हम़ कम़ नहीं हैं किसी से,अब ज़हाँ हमको ईज़्ज़त् से देखे।
पूरे होने लगे हैं वो सपने, जो कभी तेरी आँखों ने देखे।
अब़ नहीं दूर हमसे वो ख्वाबों के दिन,पऱ है अफ़सोस होगा ये सब़ तेरे बिऩ।।
तुमको लाखों-करोड़ों नमऩ।।0।।

Friday, January 29, 2010

ज़रा हटके है ज़माने से...

हमें पसन्द नहीं, भीड़ का हिस्सा बनना।
मिज़ाज अपना,ज़रा हटके है ज़माने से।।

आदमी चाहे तो, तन्हा ही बहुत कुछ करले।
अपनी पहचान बनाले अलग़, ज़माने से ।।

मऩ में हो हौस़ला,और खुद़ पे भरोसा हो अग़र।
रोक सकता न कोई,मन्ज़िल तक जाने से ।।

लोग़, तन्हा ही तो इतिहास रचा करते हैं।
बना करती है लीक़, उनके गुज़र जाने से।।

मेरी फित़रत नहीं....

मेरी फितरत़ नहीं,इन्सान को खुद़ा कहना।
फायद़े के लिये, तारीफ़ की ज़ुबाँ कहना ।।

किसी को, हक् से भी ज्याद़े,तवज्ज़ो देना।
किसी की शाऩ में,हकीक़त से ज्याद़ा कहना।।

वैसे ये फ़न है,पर ये हुनर् मुझे नहीं भाता।
जैसे रिश्वत में, सन्तरी को द़रोगा कहना ।।

..गोपाल..गोपाल ही रहे ग़र,तो बेहतऱ है बहुत।
अपनी औक़ात समझता रहे,तो क्या कहना !।

Sunday, January 24, 2010

वक्त से पहले,मुक़द्दर से ज़ियादे....

लोग़ ऐसा नहीं कि ग़ैर इरादे न मिलें।
ये और है कि आप करके भी वाद़े,न मिलें।।

आप गुज़रा किये मेरी ग़ली से भी, यूँ तो।
हमसे मिलना न था,तो पास भी आके न मिले।।

अब इतने ग़ैर हुए हम़,कि फेर ली आँखें।
यूँ निकलते हैं बचके,हम कहीं आगे न मिलें।।

हमपे तो वैसे भी हालात़ हैं,भारी-भारी।
ऐसे में आपके भी ऩेक इराद़े न मिलें।।

यही मन्ज़ूरे-वक्त है,तो चलो यूँ ही सही।
हर किसी को यहाँ मुँह-माँगी मुरादें न मिलें।।

..गोपाल..कर लिया ये सोच के ख़ामोश़ ज़ुबाँ।
वक्त से पहले,मुक़द्दऱ से ज़ियादे, न मिले।।

शानदार था शायद....

दर्द़ से ज़ार-ज़ार था, शायद।
वो मर गया,बीमार था,शायद।।

कौन था,क्या था,कहाँ का था वो?
दिल्लग़ी का शिकार था, शायद।।

और चढ़ता गया,ज्यों-ज्यों दवा की।
वो ईश्क़ का बुखार था, शायद ।।

आपका नाम लेके,दम छूटा।
आपसे,उसको प्यार था,शायद।।

सुना है,मर के भी,आँखें थी खुली।
आपका इन्तज़ार था,शायद।।

ख़िज़ा गवाह है,इस बात की अब।
कभी फ़सले-बहाऱ था,शायद।।

नोच ली ऩूर,वक्त ने अब तो।
..गोपाल..शानदार था,शायद।।

Wednesday, January 20, 2010

मेरा दर्द ना समझा कोई....

मेरे क़रीबसे जो भी ग़ुजरा,सबने अपनी-अपनी रोई।
सबने अपना द़र्द सुनाया,मेरा द़र्द ना समझा कोई।।

दुनियाँ दीवानी खुद़गर्जी की,रिश्तों में देखे मतलब़।
फितरत् और फ़रेब के हाथों,बेच चुकी है ज़मीरो-ग़ैरत्।
दिल़ के दरवाज़े,दस्तक़ देता हूँ पर आहट़ ना कोई।।सबने अपना दर्द...

दिल़,ज़ज्बात्,एहसास,मुरौव्वत्,अदब़ किताबों में जा बैठे।
शर्मो-हया,नैतिकता और लिहाज़ लगाए नक़ाब हैं बैठे।
संस्कार श्मशान जा रहा खुद ही, दे कन्धा ना कोई।।सबने अपना दर्द...

दिल़,ज़ज्बात् जिया हूँ,अदब,एहसास,उसूल उठाए मैंने।
खुशियों की ख्वाहिश़ ना रखी,सबके ग़म अपनाए मैंने।
कभी किसी की देखी जाए,मुझसे मजबूरी ना कोई।। सबने अपना दर्द...

सबको उम्मीदें मुझसे,..गोपाल..में सबका हक् शामिल है।
मेरे दिल़ के ग़लियारे में,किससे कहूँ ,कितनी हलचल़ है।
भूखी है भावना मेरी,दिल़ प्यासा,किसी को खब़र न कोई।।सबने अपना दर्द...

Monday, January 18, 2010

किसे सुनाएँ हाले-दिल़....

अब तो खामोशी भली,लब़ पे लगालें ताला।
किसे सुनाएँ हाले-दिल़,कौन सुनने वाला।।

चन्द सिक्कों की खनक़ में,सभी हुए बहरे।
दौड़ती-भागती दुनियाँ, कहाँ जाने ठहरे।
अभी ये सिल़सिला,लगता नहीं रुकने वाला।। किसे सुनाएँ...

जिसे भी देखिये,हक़ से ज़ियादे की धुऩ है।
किसे बेचें,क्या खरीदें, यही उधेड़-बुऩ है।
ऐसे बेचैनी के आलम़ में,कौन फुर्सत् वाला।। किसे सुनाएँ...

मरते ज़मीर,उसूल, गैरतो-ज़ज्बात् मिले।
महात्वाकांकांक्षा,कपट और स्वार्थ साथ मिले।
फ़ायदे के लिये,सबकुछ यहाँ बिकने वाला।। किसे सुनाएँ...

प्रेम-सद़्भाव,नैतिकता, इन्सानिय़त् न कहीं।
दिल़ की बस्ती में वीराना है,कोई आहट़ न कहीं।
है यहाँ कौन तेरा दर्द समझने वाला।। किसे सुनाएँ...

छोड़ो बेदर्द़ ज़माने से ग़िला क्या करना।
बेज़ान बुत़् में ज़िन्दगी तलाश़ क्या करना।
..गोपाल..इन पत्थरों में दिल़ नहीं मिलने वाला।। किसे सुनाएँ...

Sunday, January 10, 2010

क्यूँ है....

वादे पे किसी के अब भी, एतबार सा क्यूँ है।
दिल़ आज़ भी किसी का तलबग़ार सा क्यूँ है।।

यूँ तो हमें नहीं है,किसी का भी इन्तजाऱ।
फिर भी ये दिल़ न जाने,बेक़रार सा क्यूँ है।।

अब़ तो किसी आहट़ पे नहीं चौंकते हैं हम।
फिर भी कहीं इक़ भरम बरक़रार सा क्यूँ है।।

है ज़िन्दगी जबकि नाउम्मीदी के हवाले।
उम्मीद़ के घोड़े पे,दिल़ सवार सा क्यूँ है।।

हर चेहरे को पहचानते फिरते हैं हम..गोपाल..।
अब भी वही चेहरा,हमें दरक़ार सा क्यूँ है।।

Saturday, January 9, 2010

तमन्ना किये हुए....

रहने लगा है , सबसे फासला किये हुए।
जबसे है दिल़ ग़मों से राबिता किये हुए।।

बेचैनी सारी खत्म हुई , बेखुदी गई।
हैं दर्द को जिस दिन से हम दवा किये हुए।।

अब तो यहाँ ना शोर,ना कोहराम़ है कोई।
जबसे गया तूफाऩ , बियाबाँ किये हुए।।

मुद्द़त् हुई,सजे यहाँ,कोई ज़श्ऩ-ए-महफिल़।
बरसों ग़ुजर गये हैं , चिरागाँ किये हुए।।

मिलने की आरज़ू में,ज़िन्दगी गुज़ार दी।
वो हैं कि ग़ुजर जाते हैं,पर्दा किये हुए।।

एक बार भी,जो मेरा कहा मान जाते वो।
..गोपाल..कबसे है,ये तमन्ना किये हुए।।

इस राह पे लाकर....

फिर दर्द का तूफान,जवाँ कर गया कोई।
ठहरी हुई इक़ मौज़ रवाँ कर गया कोई।।

वैसे ही गर्केयाब़ थी,किश्ती मेरे दिल़ की।
शैलाब और ग़म के,उठा कर गया कोई।।

यादों के आईने में,जो कुछ जम सी चली थी।
वो धूल वक्त़ की,फिर उड़ा कर गया कोई।।

ज़ख्मे-जिग़र जो सूख चला था,ज़रा-ज़रा।
फिर उसमें नयी टीस जगा कर गया कोई।।

यूँ देखता हुआ गुज़र गया हमें जैसे।
कि अज़नबी क़रीब से ग़ुजर गया कोई।।

हम भी वही,वो भी वही,बस् वक्त़ वो नहीं।
अपनी वफात् से,क्यूँ फिर,मुक़र गया कोई।।

..गोपाल..हमें ऐसी तो उम्मीद़ नहीं थी।
इस राह पे लाकर,अब उस डग़र गया कोई।।

Friday, January 8, 2010

तू ज़िन्दगी है..

मिल ज़ान,हकीक़त में या ख्वाबों में मिला कर।
ना मिल सके बेपरदा, हिज़ाबों में मिला कर।।

नज़रों के रास्ते, तुझे दिल़ में उतार लूँ।
तू बन के स़फा,हमसे क़िताबों में मिला कर।।

तू बन के खुशबू आजा,हवाओँ के संग-संग।
बन के बरस जा बूँद,घटाओँ में मिला कर।।

बन के तू मस्ती शाम़ की,सुबह की ताज़गी।
हर शाम़ में,सुबह की फिज़ाओँ में मिला कर।।

दुनियाँ के बन्दिशों की, न परवाह़ किया कर।
तू ज़िन्दगी है,रूह में ,साँसों में मिला कर।।

तेरे बग़ैर, कैसी हो तसव्वुरे-हयात़्।
जी लेंगे तुझे देख के,..गोपाल..मिला कर।।

तो ग़ज़ल कह बैठे....

ग़म की बारिश ने भिगोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।
दिल़ तेरी याद़ में रोया, तो ग़ज़ल कह बैठे।।

लगी गहराने तेरे दर्द की जब परछाईं।
तेरे सपनों की जब आँखों में मौज़ लहराई।
ख्याल़ जग उठा सोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

किसी हसीन सी वादी से,जब कभी गुज़रे।
दिल़ की खिड़की खुली,बनके ख्याल़ तुम उभरे।
और हमें खुद़ में समोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

सुरमई शाम हो,तनहाई हो,फुर्सत़ हो ज़रा।
भीनी-भीनी सी महक़ लेके सरसराई हव़ा।
दिल़ में नश्तऱ सा चुभोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

नहाई चाँदनी में जब कभी भी रात हसीं।
दूर हलके से सुरों में,कहीं शहनाई बजी।
हमें नशे में डुबोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

घिर के आईं जो कभी,मस्त घटाएँ काली।
हुई सावन की जो रिम-झिम़,दिल़ लुभाने वाली।
दिल़ तेरे सपनों में खोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।।दिल़ तेरी याद़..

क्या पता,शायरी क्या,मीऱ क्या और ग़ालिब़ क्या।
दिल़ में जज्बात़ कुछ मचले,..गोपाल..गुबाऱ उठा।
उन्हें लफ्जों में पिरोया,तो ग़ज़ल कह बैठे।। दिल़ तेरी याद़..

Thursday, January 7, 2010

प्यार-मुहब्बत़....

भूल जाओ और याद़ न रखो, कहना है आसान।
प्यार-मुहब्बत़ क्या समझे,कोई पत्थर-दिल़ इन्सान।।

ज़ान-बूझकर कोई किसी से प्यार नहीं है करता।
पहली नज़र में हो जाता है,ज़ादू दिल़ पर इसका।
चुपके से दिल़ का मेहमाँ,बन जाता कोई अनज़ान।। प्यार-मुहब्बत़।।

लगने लगते दिल़ को,जीवन के हर रंग सुहाने।
जीने का अन्दाज़ बदल जाता है, क्यूँ ना जाने।
होती दुनियाँ के सुन्दरता की असली पहचान ।। प्यार-मुहब्बत़।।

नहीं ज़रूरी है ये कि हम़ साथ गुज़ारें जीवऩ।
प्यार किया तो किया किसी को,करते रहेंगे हरदम़।
प्यार में कोई शर्त न होती,होता है बलिदाऩ ।। प्यार-मुहब्बत़।।

होती तऩ की हवस़ जहाँ,हो वहीँ जुनूँ पाने का।
प्याऱ नाम है देने का,और किसी के हो जाने का।
समझे प्यार हवस़ को जो,..गोपाल..बड़ा नादान।।प्यार-मुहब्बत़।।

Monday, January 4, 2010

आज़ के मज़नुओं ने....

आज़ के मज़नुओं ने,प्यार को सस्ता बना डाला।
किसी को भी थम्हादे,ऐसा गुल़दस्ता बना डाला ।।

बदल दी शक्लो-सूरत,रंगो-बू,पहचान यूँ इसकी।
कि हालत इस कद़र कुछ,प्यार का खस्ता बना डाला।।

अजी वो और थे,जो कर गये थे खुद़ा प्यार को।
पहाड़ों को भी जिसने चीरकर,रस्ता बना डाला ।।

आज-कल़ प्यार,एक फैशऩ की,नुमाईश की चीज़ है।
जो कल परदे में था,आज़ उसका ही परद़ा बना डाला।।

Sunday, January 3, 2010

चलो लौट चलें....

दूर तक अन्धेरा ही अन्धेरा है,चलो लौट चलें।
कितना सायूस़ सवेरा है , चलो लौट चलें ।।

गर्दिशे-वक्त़ की गुबार है, कुछ यूँ फैली ।
और तकदीऱ की चाद़र भी अपनी,है मैली।
बेऱहम धुन्ध ने घेरा है, चलो लौट चलें ।। कित़ना मायूस....

कहीं भी रोशनी नहीं,जहाँ तक जाती नज़र।
चलो अब छोड़कर चलें,ये अन्धेरों का शहऱ।
यहाँ खुद़ग़र्जी का डेरा है, चलो लौट चलें ।। कितना मायूस....

चलो वहीं फिर, जहाँ ज़िन्दग़ी नग़मे गाती।
जहाँ..गोपाल..सच्,इन्सानियत़,उम्मीद़ के साथी।
प्याऱ का दिल़ में बसेरा है, चलो लौट चलें ।। कितना मायूस....

दुनियाँ तेरी उस पार....

तू उलझा इस पार मुसाफिऱ,दुनियाँ तेरी उस पार।
बिऩ माली गुलश़न जैसा,तेरा सूना पड़ा संसार।।मुसाफिर दुनियाँ..

तेरे अपने रोते तुझ बिन,कटती रातें तारे गिन-गिन।
ओढ़ते आशा,बहाने बिछाते,आँसू पीते,सपने खाते ।
समय सरकता सिसक-सिसक कर,करते तेरा इन्तजार।।मुसाफिर दुनियाँ..

खोज़ रहा तू सुख के साधन,छोड़ आया पीछे सारा धन।
उन आँखों में आँसू भरकर,अपने दिल पर पत्थर रखकर।
सपनों के पीछे-पीछे , तू करता हाहाकार ।। मुसाफिर दुनियाँ..

सोच तनिक तूने क्या पाया,देख पलट के क्या छोड़ आया।
छोड़ दौड़ना दौड़ ये अन्धी,लौट जा,मुड़ जा,वापस अब भी।
हो जाए फिर से गुलशऩ..गोपाल..तेरा गुलज़ार ।। मुसाफिऱ दुनियाँ..

Saturday, January 2, 2010

जिन्दगी देखी....

ज़िन्दगी देखी--ज़िन्दगी के रंग देखे।
दुनियाँ देखी--दुनियाँ की रीति देखी।
अपने देखे--अपनों का प्य़ार देखा ।
बेग़ाने देखे--बेग़ानेपन की हद़ देखी।
दोस्त़ देखे--दोस्ती का म़कसद़ देखा।
दुश्मनी देखी--दुश्मनी की बुनिय़ाद देखी।
आद़मी देखा--आद़मी की औकात़ देखी।।

बुरा मान गये....

हाले-दिल़ पूछे,बताया,तो बुरा मान गये।
उन्हें यकीं भी दिलाया,तो बुरा मान गये।।
पायें-नाज़ुक न सऱ-आँखों पे जो लिया हमने।
सऱ ही सज़दे में झुकाया,तो बुरा मान गये।।
ढूंढते फिरते हैं वो दाग़, सबके चेहरों पे ।
आईना उनको दिखाया,तो बुरा मान गये।।
उछलते फिरते हैं वो,बनके ज़वानी की शान।
झुर्रियाँ याद़ दिलाया, तो बुरा मान गये ।।
हर घड़ी फायदे की बात,किया करते हैं।
फर्ज़ की बात चलाया,तो बुरा मान गये।।
अज़ीब सख्श हैं..गोपाल.. कोई ठीक नहीं।
हुए किस बात पे वो खुश,कब बुरा मान गये।।

Friday, January 1, 2010

दोस्त बन-बन के....

जब भी मिलते हो,दिल़ को ज़ख्म़ नया देते हो।
दोस्त बन-बन के तुम,हर बार द़गा देते हो ।।

तुम्हे एहसास़ ही क्या,दिल़ है क्या,जज्बात् है क्या।
गरज़ पे अपने,याद़ करते हो,भुला देते हो ।।

अपने मतलब़ के लिये,रंग बदलते हो तमाम़।
कहीं,किसी भी हद़ तक,खुद़ को गिरा देते हो।।

सुनाए तुमको ,कोई अपना हाले-दिल़ कैसे ।
..गोपाल..सुनने से पहले ही, सुना देते हो।।

कैसे मिटेंगे फासले....

जीवन के सफऱ में, निभाऊँ कैसे तेरा साथ।
तुम रुक नहीं सकते,मैं चल नहीं सकता ।।

कैसे समझ सकोगे तुम, हाले-दिल़ मेरा ।
तुम़ पूछ नहीं सकते, मै कह़ नहीं सकता।।

अपनी है कहानी, कुछ ज़मीं-आसमाँ जैसी।
ये उठ नहीं सकती, वो झुक़ नहीं सकता ।।

कैसे मिटेंगे फास़ले,..गोपाल..अपने बीच।
तुम़ आ नहीं सकते, मैं जा नहीं सकता ।।