ना नीति, ना नीयत, न ही ईमान रह गया।
इन्सानियत चली गयी, इन्सान रह गया।।
अब तो भले-बुरे में, कहॉ फ़र्क़ रह गया ।
अब बस् ये है , कि क्या नफ़ा-नुक़सान रह गया।।
अब सच का सच बचाए रखना, सच में कठिन है।
सच आज ये सच देख , ख़ुद हैरान रह गया ।।
Dedicated to Kashmiri Pandits-
हैरत् से ,देखता सा , मेज़बान रह गया ।
मालिक था जो क़ल, आज वो मेहमान रह गया।।
क़िलकारियाँ उजड़ गयीं, बस्ती बदल गई ।
सपनों का घरौंदा, खडा़ वीरान् रह गया ।।
दुनियाँ की पहली वादिये- ज़न्नत् है ,जहाँ से।
‘संतोष’ तो चला गया, ‘सलमान’ रह गया ।।