Thursday, December 23, 2010

अब इसे बन्द करो........

किसका मन्दिर,किसकी मस्ज़िद,अब इसे बन्द करो।
बहुत हुई ये सियासत्, अब इसे बन्द करो ।।

सारी दुनियाँ जो सम्भाले, उसे सम्भालोगे ?
छोड़ो ये फ़र्ज़ी हिफ़ाज़त्,अब इसे बन्द करो ।।

सारी धरती है उसीकी, कहाँ नहीं है वो ?
तेरी-मेरी की वक़ालत्,अब इसे बन्द करो।।

नशाए-मज़हब में, इन्सानियत् को मत् भूलो !
बस् अब बदलो अपनी नीयत्,अब इसे बन्द करो।।

कुछ तो ऐसा करो, हर रूह को राहत् पहुँचे।
जेहादो-जंग की फ़ितरत्,अब इसे बन्द करो।।

जियो सुकून से, सबको सुकूँ से जीने दो ।
लग रही क़ौम पे तोहमत्,अब इसे बन्द करो।।

यहाँ के ना हुए, तो ख़ाक़ वहाँ जाओगे ?
कहाँ"गोपाल"पे रहमत्,अब इसे बन्द करो।।

Sunday, December 5, 2010

ग़ुजिस्ता दौर......

गुजिस्ता दौर गया, देके ये पैग़ाम हमें।
कि शराफत् ही अपनी कर गई नाकाम हमें।।

तमाम ज़िन्दग़ी, सफ़र में खप गई यूँ ही।
मग़र मिला ना कोई मन्ज़िलो-मुक़ाम् हमें।।

मेरे सिवाय,बदल गया ये ज़माना,फिर भी।
बदल गये जो,बदलने का दें इल्ज़ाम् हमें।।

जिनको रुसवा नहीं होने दिया हमने वो ही।
जाने क्यों? करते फिरें,ख़्वामोख़्वा बदनाम हमें।।

अपनी बेअक़्ली पे, हम आज़ बहुत हैराँ हैं।
जिसे पहचान दी,उसने किया बेनाम हमें।।

जिसे आँखों में बसाया,सजाया सीने में।
चला गया वही, करके लहूलुहान हमें।।

अजब दस्तूर है..गोपाल..इस ज़माने का।
सभी ग़रज़ पे ही,करते फिरें सलाम हमें।।

Wednesday, December 1, 2010

हमसा "आवारा" ना मिला.....

मांगने निकले,सहारा ना मिला।
हमें समझे,वो हमारा ना मिला।।

जिसे महसूस किया,दिल के क़रीब।
ऐसा बिछड़ा,कि दुबारा ना मिला ।।

हम भी तूफ़ान से बच जाते,मग़र।
कोई मौसम का ईशारा,ना मिला।।

सारी दुनियाँ में, ढूंढ कर देखा ।
..गोपाल..हमसा"आवारा"ना मिला।।